उत्तर प्रदेश में स्मारक घोटाले को लेकर ईडी की सात टीमें छापेमारी कर रही हैं। उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के पूर्व एमडी सीपी सिंह के अलावा स्मारकों में पत्थर सप्लाई करने वाली फर्मों के दफ्तरों में और इंजीनियर के यहां भी छापेमारी की जा रही है। ईडी की टीमें गोमतीनगर, अलीगंज, हजरतगंज और शहीद पथ के पास छापेमारी कर रही हैं। ईडी को छापेमारी में कई अहम दस्तावेजों सहित अन्य जानकारियां मिली हैं।
क्या है स्मारक घोटाला
बसपा सुप्रीमो मायावती के कार्यकाल में 2007 से 2012 तक स्मारकों का निर्माण किया था। 1400 करोड़ के इस घोटाले की जांच विजलेंस और ईडी की टीमें कर रही हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मायावती राज में हुए स्मारक घोटाले को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए मामले में चल रही विजलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि जनता के धन का दुरुपयोग करने का कोई भी दोषी बचना नहीं चाहिए। दोषी कितना भी रसूखदार हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए। अदालत ने विजििलेंस जांच की धीमी रफ़्तार पर भी सवाल उठाए थे और यूपी सरकार से पूछा है कि क्यों न इस मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी को सौंप दी जाए।
14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार के घोटाले का आरोप
बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ-नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत कई स्थानों पर पत्थरों के स्मारक तैयार कराए थे। इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 14 अरब 10 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घपला कर सरकारी रकम का दुरुपयोग किया गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी। लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी।
लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोग आरोपी
लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है। जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे। इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रुपये डकारे गए। लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की सरकारी रकम का दुरुपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी। इसके अलावा 12 अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं। लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था। इनमें मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे।
पौने पांच साल में न तो जांच पूरी हुई न चार्जशीट दाखिल हुई
पूर्व की अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी। विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमतीनगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की थी। करीब पौने पांच साल का वक्त बीतने के बाद भी अभी तक न तो इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो सकी है और न ही विजिलेंस अपनी जांच पूरी कर पाई है।
अदालत ने कहा था- अरबों के घोटाले का कोई भी दोषी कतई बचना नहीं चाहिए
भावेश पांडेय की पीआईएल में विजिलेंस द्वारा राजनीतिक दबाव में जांच को लटकाए जाने और इस मामले में लीपापोती किए जाने के आरोप लगाए गए थे। पीआईएल के जरिए लोकायुक्त की सिफारिश के तहत पूरा मामला सीबीआई को ट्रांसफर करने की अपील भी की गई है। अर्जी में यह भी कहा गया है कि मामले में चूंकि तमाम हाई प्रोफाइल लोग आरोपी हैं, इसलिए इसमें लीपापोती की जा रही है। याचिकाकर्ता ने सीधे तौर पर बसपा नेता का नाम लिए बिना यह आशंका जताई थी कि अगर सीबीआई या एसआईटी इस मामले में जांच करती है तो कई और चौंकाने वाले हाई प्रोफाइल लोगों की मिलीभगत भी सामने आ सकती है।