उत्तराखंड की अफसरशाही की कार्यशैली से न तो सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी संतुष्ट हैं और न ही शासन के मुखिया मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधू। तमाम नसीहतों के बाद भी इनकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आ रहा है। अब सीएम धामी ने इस मामले में सख्त लहजे में अफसरों को चेतावनी दी है तो सीएस ने तो बकायदा एक पत्र लिखकर आला अफसरों को नसीहत दी है।
सूबे की अफसरशाही को लेकर आए दिन सवालात उठते रहते हैं। कई बार तो मंत्रियों के आदेश पर भी अमल न होने की शिकायतें सामने आती रही है। मुख्यमंत्री धामी अफसरों की बैठक में कई बार नसीहतें दे चुके हैं तो मुख्य सचिव को तो इस बारे में लिखित आदेश तक जारी करना पड़ा है।
मुख्य सचिव ने सभी प्रमुख सचिव और सचिवों को एक पत्र भेजा है। इसमें कहा गया है कि उनकी बैठक में अफसर बगैर पूरी जानकारी के ही आ रहे हैं। कई बार तो जूनियर अफसर को इस बैठक में साथ लाया जाता है या फिर उसे ही भेज दिया जाता है। हालात उस समय अजीब हो जाते हैं जब किसी सवाल का जवाब देने के लिए बेहद जूनियर अफसर को इशारा कर दिया जाता है। अब इसे सहन नहीं किया जा सकता। विभागीय प्रमुख सचिव या सचिव पूरी जानकारी के साथ खुद ही बैठकों में शिरकत करें। बेहद जरूरी स्थिति में ही जूनियर अफसर को उनकी बैठक में भेजा जाए।
विगत दिवस गुड गर्वनेस के के मुद्दे पर हुई बैठक में सीएम धामी ने भी अफसरशाही का कार्यशैली पर तमाम सवाल खड़े किए। उन्होंने साफ कर दिया है कि अब अफसरों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। बेवजह की किसी काम में देरी को अब सहन नहीं किया जाएगा। सरकार के काम और नीतियों का लाभ हर हाल में पंक्ति में अंतिम स्थान पर खड़े आम आदमी तक अफसरों को पहुंचाना ही होगा।
अब देखने वाली बात ये होगी कि सूबे अफसरशाही (शासन और जिला प्रशासन) सरकार के मुखिया धामी और शासन के मुखिया डॉ. संधू की इन चेतावनी पर अपनी कार्यशैली में कुछ सुधार करती है या फिर कुछ समय पश्चात दोनों को फिर से इसी तरह से अपनी नाराजगी का इजहार करना पड़ता है।