उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में तीन साल पूरे करके एक रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले बीजेपी के किसी भी मुख्यमंत्री ने लगातार तीन साल तक यूपी पर राज नहीं किया। कल्याण सिंह ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर दो साल 52 दिन पूरे ही किए थे कि पार्टी के बीच खटपट हो गई और राम प्रकाश गुप्त को सीएम बना दिया गया था। उसी कार्यकाल के आखिर में राजनाथ सिंह ने भी एक साल चार महीने से कुछ ज्यादा दिन प्रदेश की बागडोर संभाली थी। आदित्यनाथ की उपलब्धि इस लिहाज से भी बड़ी है, कि पार्टी के 100 से भी ज्यादा विधायक विधानसभा के भीतर अपने जिले के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए थे। इतनी बड़ी संख्या में अपने विधायकों की नाराजगी के बावजूद अगर योगी सरकार चला रहे हैं तो साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व का उनपर भरोसा बरकरार है।
सरकार ने विकास और कानून-व्यवस्था को लेकर कई दावे किए हैं। सरकार के दावे अपनी जगह सही हों, तो भी मुख्यमंत्री अपने काम करने के तौर-तरीके से अपने साथी मंत्रियों और पार्टी विधायकों का समर्थन हासिल करने में नाकाम दिखते हैं। प्रदेश में पुराने शहरों के नाम बदलने की बात हो या सीएए विरोधी आंदोलन से उबरने की कोशिश, सभी में सख्ती के साथ एक जिद साफ दिखती है। इसको लेकर असंतोष बड़ा होता जा रहा है। योगी के सामने अगले दो सालों में यह चुनौती और बड़ी होगी। बीजेपी के विधायक ‘ऑफ द रिकार्ड’ स्वीकार करते हैं कि सरकार का यह रवैया चुनाव में मुश्किलें पैदा कर सकता है। वैसे भी विधायक इस सच्चाई से रू-ब-रू हैं कि यूपी में सरकारें रिपीट नहीं होतीं।
सरकार के तीन साल पूरे होने पर प्रदेश के विकास की जो तस्वीर दिखाई गई, हकीकत में वैसी दिखती नहीं। सीएए विरोधी आंदोलन के वक्त प्रदेश की कानून-व्यवस्था भी बिगड़ गई थी। विपक्ष के नेता और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी सरकार की उपलब्धियों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने ने कहा, सरकार ने यह तो बता दिया कि गन्ना किसानों का कितना बकाया भुगतान किया है, लेकिन यह नहीं बताया कि अब भी गन्ना किसानों का सरकार के पास कितना बकाया है।
कुछ मामलों में सरकार की तारीफ भी करनी पड़ेगी। अयोध्या मामले में फैसला आने के बाद कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की चुस्ती से पूरे प्रदेश में शांति बहाल रही। तारीफ इसलिए भी बनती है कि मुख्यमंत्री ने बरसों पुरानी सिफारिश से धूल हटाकर दो शहरों में ही सही, कमिश्नरी व्यवस्था को लागू करने का साहस दिखाया। लेकिन पुलिस महकमे में अफसरों के आपसी टकराव और तबादलों में भ्रष्टाचार की कहानी जांच के बोझ में अब भी दबी है। यूपी को अब भी उस कहानी के आजाद होने का इंतजार है। कुलदीप सिंह सेंगर प्रकरण के कारण भी सरकार की स्थिति असहज हुई।
औद्योगिक और आर्थिक विकास की बड़ी तस्वीर पेश करने के लिए जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, वे भी हकीकत से परे लगते हैं। पिछली सरकार के काम को नकार कर अपने एजेंडे को सही ठहराने और उसे आगे बढ़ाने में प्रदेश के खजाने का बड़ा हिस्सा निकल गया। आईटी सिटी को आगे बढ़ाने के बजाय वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट का सपना देखना और उसपर काम करना बुरा नहीं था, पर उसकी प्रगति की सही तस्वीर पेश करना भी जरूरी था। औद्योगिक क्षेत्र में निजी निवेश का मसला हो या लघु और मध्यम उद्योगों के निर्यात के आंकड़े, इस दिशा में पारदर्शिता रखना ही बेहतर रहता। तस्वीर का ये पहलू बेहद भरमाने वाला है।