सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को उनके सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर फटकार लगाते हुए अंतरिम जमानत दी है। उन्होंने 'ऑपरेशन सिंधूर' पर एक पोस्ट किया था, जिसे लेकर अदालत ने उन्हें 'सस्ती लोकप्रियता' हासिल करने का प्रयास करने वाला बताया और कहा कि जब देश गंभीर संकट से गुजर रहा था, उस समय इस तरह की भाषा का प्रयोग करना गैरजिम्मेदाराना है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने महमूदाबाद की टिप्पणी को 'डॉग व्हिसलिंग' करार देते हुए कहा कि यह लोगों को भड़काने का एक तरीका है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर रोक लगाने से इनकार करते हुए उन्हें तीन शर्तों पर जमानत दी—पहली, वह इस मामले पर कोई लेख, भाषण या पोस्ट नहीं करेंगे; दूसरी, 'ऑपरेशन सिंधूर' या पहलगाम हमले पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे; और तीसरी, उन्हें अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करना होगा।
साथ ही कोर्ट ने हरियाणा पुलिस को 24 घंटे के भीतर हरियाणा या दिल्ली के बाहर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का निर्देश दिया। अशोका यूनिवर्सिटी ने कोर्ट के फैसले पर राहत की सांस ली है और प्रोफेसर महमूदाबाद को मिली जमानत को न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। बता दें कि उन्हें हरियाणा पुलिस ने 18 मई को गिरफ्तार किया था और उन पर राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालने तथा समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है।