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माओवादी-लिंक मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, साईंबाबा को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को किया निलंबित

उच्चतम न्यायालय ने माओवादियों से जुड़े एक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर...
माओवादी-लिंक मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, साईंबाबा को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को किया निलंबित

उच्चतम न्यायालय ने माओवादियों से जुड़े एक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को शनिवार को निलंबित कर दिया। हाईकोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में साईंबाबा और अन्य को बरी कर दिया था।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की शीर्ष अदालत की पीठ, जो मामले की सुनवाई के लिए एक गैर-कार्य दिवस पर बैठी थी, ने भी साईंबाबा के अनुरोध को उनकी शारीरिक अक्षमता और स्वास्थ्य की स्थिति के मद्देनजर नजरबंद रखने के अनुरोध को खारिज कर दिया।

इसने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के निर्देशानुसार साईंबाबा सहित मामले के सभी आरोपियों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी। इसने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर साईंबाबा और अन्य आरोपियों से जवाब मांगा।

उनकी गिरफ्तारी के आठ साल से अधिक समय बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को साईंबाबा को बरी कर दिया। उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने निचली अदालत के 2017 के उस आदेश को चुनौती देते हुए साईंबाबा की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्हें मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

साईबाबा के अलावा, अदालत ने महेश करीमन तिर्की, पांडु पोरा नरोटे (दोनों किसान), हेम केशवदत्त मिश्रा (छात्र) और प्रशांत सांगलीकर (पत्रकार) को बरी कर दिया, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। बता दें कि शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर से बंधे 52 वर्षीय साईंबाबा इस समय नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं। उन्हें फरवरी 2014 में गिरफ्तार किया गया था।


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