मोहम्मद हसन को आज भी नहीं समझ आ रहा कि 24 नवंबर की सुबह उन्हें गोली कैसे लगी थी। उस दिन संभल की शाही जामा मस्जिद के बाहर हो रहे पथराव के बीच हसन अपने छोटे भाई को ढूंढने निकले थे। तभी कोई नुकीली चीज उनके दाएं बाजू को भेद गई। जाने वह गोली थी या छर्रा, लेकिन उन्हें पता ही नहीं चला कि वह किसकी ओर से चली थी- स्थानीय लोगों से या पुलिस से। कौन क्या दाग रहा था, उन्होंने इस पर उस वक्त ध्यान ही नहीं दिया। पुलिसवाले वहां से उन्हें पहले कोतवाली ले गए, फिर जिला अस्पताल में भर्ती करवाने लाए। घटना के तीन दिन बाद हुई बातचीत में उन्होंने बताया, ‘‘मैं बीच में फंस गया। जो भी था आर-पार चला गया।’’
उस हिंसा में पांच लोग मारे गए। संभल की पुलिस ने ढाई हजार लोगों को हिंसा का आरोपी बनाते हुए मुकदमा किया है। हसन भी उनमें एक है। ज्यादातर अज्ञात अनाम लोग हैं। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि गोलियां पुलिस ने चलाई थीं जब अदालत द्वारा सर्वे के आदेश के बाद मस्जिद के बाहर बवाल मचा था। सर्वे के आदेश के पीछे यह दावा है कि मस्जिद के नीचे एक मंदिर है।
मृतक 17 वर्षीय अयान के शोकसंतप्त रिश्तेदार
हसन की बहन आशिया बीबी ने बताया कि उन्हें खुद हसन ने बताया था कि उन्हें ‘‘गोली लगी है’’ और वे हिंसा में संलिप्तता के आरोप में पुलिस ‘‘हिरासत में’’ हैं। आशिया ने बताया कि परिवार दबाव में है, ‘‘हसन तो भीड़ का हिस्सा था ही नहीं। वह तो छोटे भाई को ढूंढने वहां गया था। आशिया बताती है, ‘‘अभी बीस दिन पहले ही हमारे अब्बा का इंतकाल हुआ है। छोटा भाई उस सुबह उनकी कब्र पर गया हुआ था। हसन गलत जगह पर गलत वक्त पर मौजूद था, बस यही उसकी गलती है।’’
यही कहानी मारे गए पांचों लोगों की है। पांचों के परिवार मजदूर तबके से आते हैं। मारे गए पांच में से दो किशोर हैं। सत्रह बरस का मोहम्मद अयान काम पर जाते वक्त मारा गया, अठारह बरस का कैफ अपनी दुकान के लिए सौदा लेने गया था और मारा गया। हैंडलूम की दुकान चलाने वाले बाईस बरस के बिलाल अंसारी दिल्ली के एक वितरक से डिलीवरी आने का इंतजार करते हुए मारे गए। पैंतीस साल के नईम गाजी मिठाई की दुकान के लिए तेल और आटा लेने बाजार गए थे।
स्थानीय प्रत्यक्षदर्शी कहते हैं कि संभल के मुस्लिम इलाकों में 19 नवंबर के बाद से ही तनाव फैला हुआ था, जब एडवोकेट विष्णु् कुमार जैन ने सिविल जज आदित्य सिंह की अदालत में कुछ हिंदू याचियों की तरफ से एक याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि शाही मस्जिद हरिहर मंदिर के खंडहर के ऊपर बनाई गई है। याचिका में इसका पता लगाने की प्रार्थना की गई थी ताकि हिंदुओं के लिए उसे खोला जा सके। जैन वकील पहले अयोध्या, बनारस और मथुरा के ऐसे ही मुकदमों का हिस्सा रह चुके हैं।
पुराना मामला, नया बवाल
इस मस्जिद से बीस किलोमीटर दूर कैला देवी मंदिर के प्रमुख और मुख्य याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरि रहते हैं। याचिका लगाने से पहले वे हफ्ते भर से लगातार बयान दे रहे थे कि उन्हें खुद भगवान हरि ने मुकदमा करने का आदेश दिया था।
सशस्त्र पुलिस बल के बीच वे वॉकी टॉकी पर टूटती हुई आवाज में जोर देकर कहते हैं, ‘‘वह हरिहर मंदिर है। हमेशा से मंदिर रहा है। बाबर ने इसे नष्ट कर मस्जिद बनाई थी।’’ वे इसका संदर्भ लेने के लिए बाबरनामा और आईन-ए-अकबरी का नाम लेते हैं। ‘‘सब कुछ याचिका में दर्ज है, इंटरनेट पर भी मौजूद है।’’
मुख्य याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरी
वे घटनाक्रम पर अफसोस जताते हैं, ‘‘मौतें दुर्भाग्यपूर्ण हैं। स्थानीय लोगों को सर्वे के अदालती आदेश में दखल नहीं देना चाहिए था।’’ हालांकि वे खुद कभी उसके भीतर नहीं गए हैं फिर भी दावा करते हैं कि मस्जिद परिसर के भीतर एक मंदिर मौजूद है। उनका कहना है कि बचपन में उन्होंने सपने में देखा था कि संभल में हरिहर मंदिर है। वैसे मुकदमा करने का फैसला उन्होंने बीते एकाध साल के दौरान ही लिया।
अब क्यों?
महंत गिरि का कहना है कि मुकदमा अब जाकर हो पाया क्योंकि यही ‘‘हरि की इच्छा’’ थी। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि सर्वे का फैसला जल्दबाजी में लिया गया है, जिसमें सांप्रदायिक तनाव की आशंका को नजरंदाज किया गया।
मुस्लिम पक्ष के वकील कमर हुसैन कहते हैं, ‘‘सर्वे का आदेश याचिका दायर होने के कुछ घंटों के भीतर दिया गया। सर्वे शाम साढ़े पांच बजे शुरू हो गया। इसके पहले न तो प्रशासन को और न ही मस्जिद कमेटी को कोई नोटिस दिया गया जबकि यह प्रक्रिया का हिस्सा है।’’ उन्होंने मजाक उड़ाते हुए कहा कि यह याचिका ‘‘नई बोतल में पुरानी शराब’’ जैसी है। वे कहते हैं, ‘‘अयोध्या के बाद से तो मुसलमानों के प्रार्थना स्थलों को निशाना बनाने का चलन सा हो गया है।’’
भारत की राजनीति में मंदिर-मस्जिद का विवाद लंबे समय से स्थायी हो चला है। अकसर इसकी पटकथा एक जैसी ही होती है। बनारस में भी ऐसा ही हुआ था, जब 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के अदालती आदेश के बाद टकराव बढ़ गया था। दावा किया गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद श्रृंगार गौरी मंदिर के खंडहर के ऊपर बनी है। इस सर्वे में एक कथित शिवलिंग बरामद हुआ था। इसी तरह मथुरा में हिंदुओं का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनी हुई है और वह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है। इसके बाद वहां भी पूजा के अधिकार की मांग उठने लगी है।
संभल का मामला काशी, मथुरा या अयोध्या जितना चर्चित नहीं था लेकिन वहां की मस्जिद लंबे समय से विवाद का मसला बनी हुई थी। इस मस्जिद के भीतर 1976 में एक इमाम की हत्या शिवरात्रि के दिन कर दी गई थी, जिसके बाद महीने भर तक कर्फ्यू रहा था। मौलाना मामलुक उर रहमान बर्क उस घटना के लंबे असर को आज भी याद करते हैं। उनके बेटे जियाउर रहमान बर्क समाजवादी पार्टी के सांसद हैं, जिन्हें विधायक नवाज इकबाल महमूद के बेटे सोहैल के साथ पुलिस ने हिंसा भड़काने का आरोपी बनाया है। संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई का कहना है कि बर्क के भड़काऊ बयानों के बाद ही इलाके में तनाव बढ़ा और स्थिति नाजुक हुई।
संभल थाने के बाहर जमात उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधिमंडल
मौलाना बर्क और समाजवादी पार्टी के नेताओं का मानना है कि इस मामले के पीछे राजनीतिक मंशा काम कर रही है, ‘‘पहले सर्वे के अगले दिन कुंदरकी का उपचुनाव हुआ, शायद इसलिए ताकि सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दी जा सके। तीस साल बाद भाजपा कुंदरकी में जीती और अगले ही दिन फिर से सर्वे करवाया गया ताकि यहां की अल्संख्यक आबादी को भड़काया जा सके।’’
भाजपा ने समाजवादी पार्टी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। उत्तर प्रदेश के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल ने हिंसा और आगजनी का दोष तुर्क और पठान समुदायों के बीच वर्चस्व के झगड़े पर लगाया है। तुर्क बिरादरी से आने वाले बर्क के पर पठान नेता सोहैल इकबाल के साथ तनाव पैदा करने का आरोप है। बर्क कुंदरकी के पूर्व विधायक हैं, जो बीते आम चुनाव में सांसद बन गए थे। इसी के चलते यह सीट खाली हुई है। दिल्ली में संसद के शीत सत्र में हिस्सा लेने आए बर्क ने पत्रकारों को बताया कि पुलिस ने सच को छुपाने के लिए उनका नाम एफआइआर में लिखा है।
संभल में मंदिर पर मस्जिद बनाए जाने वाले दावे की कहानी उन्नीसवीं सदी में अंग्रेज पुरातत्वविद एसीएल कार्लाइल की एक रिपोर्ट तक जाती है। मौजूदा याचिका में 1979 की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है और कहा गया है कि हो सकता है मस्जिद पुराने मंदिर के मलबे से खड़ी की गई हो। याचिका में बाबर के नाम वाले शिलालेख पर भी सवाल खड़ा किया गया है और मस्जिद निर्माण में बाबर की भूमिका पर संदेह जताया गया है।
इस बीच संभल की सड़कों पर चुप्पी पसरी हुई है। हिंसा के बाद से 27 लोगों को गिरफ्तार किया गया। सभी मुसलमान हैं। इनमें तीन औरतें और तीन नाबालिग हैं। वीडियो और तस्वीरों के आधार पर सत्तर से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए हैं। कई दुकानें, घरों के दरवाजे और खिड़कियां बंद दिखाई देते हैं क्योंकि गिरफ्तारी के डर से अधेड़ पुरुष घर छोड़कर चले गए हैं। डर ऐसा है कि परिवार अपने मारे गए, जख्मी या गिरफ्तार परिजनों के ऊपर तेज आवाज में दुख भी जाहिर नहीं कर पा रहे हैं।
नईम की मां इदरीसा कहती हैं, ‘‘पुलिस घरों में छापे मार रही है, लोगों को परेशान कर रही है और उनके ऊपर गोलीबारी के इल्जाम लगा रही है।’’ कैफ और अयान के परिजनों का भी यही संकट है। कैफ के पिता मोहम्मद हुसैन हाथ जोड़कर बोले, ‘‘हम गरीब लोग हैं। और मुसीबत नहीं चाहते।’’