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आलोक तोमर की याद में उभ्‍ारी देश्‍ा में ‘बदलाव की इबारत’ पर चिंता

‘कैसी होगी भारत में हो रहे बदलाव की नई इबारत?’ धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों की यह चिंता नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब के एक कार्यक्रम में उभर कर आई।
आलोक तोमर की याद में उभ्‍ारी देश्‍ा में ‘बदलाव की इबारत’ पर चिंता

   हरफनमौला पत्रकार आलोक तोमर की दमदार कलम और कर्मठता की स्मृति को समर्पित ‘…यादों में आलोक’/ ‘भारतः बदलाव की इबारत’ शीर्षक परिसंवाद में वक्ताओं ने आजादी और पिछली सरकारों के काल में झांकते हुए मौजूदा शीर्ष राजनीति में सांप्रदायिकता की भारी दखल को चिंतित स्वर में रेखांकित किया।

   इतिहासकार आदित्य मुखर्जी ने कहा कि समाज और इतिहास बनाने में मीडिया का विशेष योगदान होता है। स्वतंत्रता संग्राम इस बात का साक्षी है कि 19वीं शताब्दी में साम्राज्यवाद से लड़ने में मीडिया की खास और क्रांतिकारी भूमिका रही है। आज जो सांप्रदायिकता को हथियार बना कर नव साम्राज्यवाद अपने पांव पसार रहा है, उससे लड़ने के लिए हमें इतिहास से वो जनता, वो मीडिया खोज कर लाना होगा जो आज के बदलावों, जिसमें योगी आदित्यनाथ जैसे देश के सबसे बड़े प्रदेश (उत्तर प्रदेश) के मुख्यमंत्री हो रहे, को बदल सकें। इतिहास की अधिक चर्चा के साथ उन्होंने हालांकि, वर्तमान को एक छौंक की तरह ही रखा। आजादी के बाद पहले चुनाव और नेहरू राज की चर्चा में उन्होंने कहा कि दरअसल उस समय सांप्रदायिक ताकतें परास्त तो हुईं लेकिन समाप्त नहीं की जा सकीं, जो आज विकराल रूप धारण कर हमारे सांप्रदायिक सौहार्द्र को ध्वस्त कर रही हैं, संविधान की मंशा तक को भी चुनौती दे रही हैं।

   कृषि अर्थशास्‍त्री देविंदर शर्मा ने कहा, दक्षिणपंथी पूंजी डेमोक्रेसी में बढ़ती है। यही वजह है कि आज दो शताब्दी बाद भी, हम कंपनीराज में ही जी रहे हैं। हम चाइना का उदाहरण देते हैं और बार-बार ग्रोथ की बात करते हैं। इसे ऐसे क्रिएट किया जाता है कि ग्रोथ से ही होगा सबसे बड़ा बदलाव। लेकिन जीडीपी बढ़ाने का यही हाल रहा तो आगे भारत में इंग्लैंड की तरह प्रॉशीक्यूशन और ड्रग्स का कारोबार और बढ़ कर युवाओं को बर्बाद करेगा।

   शर्मा ने कहा कि विश्वबैंक की एक रिपोर्ट (2008) में कहा गया ‌था, 2015 तक 40 करोड़ ग्रामीण गांव छोड़ कर शहर आ जाएंगे। आज हमारे शासक इसके अमल में जीडीपी बढ़ाने के लिए किसानों/खेतिहर मजदूरों को गांव से उठ कर शहर आने के लिए मजबूर कर रहे हैं।    

   अध्यक्षता डिजिटल अखबार दि सिटिजन की मुख्य संपादक सीमा मुस्तफा ने की। संयोजक/संचालक प्रो. आनंद प्रधान ने कहा कि एक खास आइडिया और आइडिया का नैरेटिव पिछले करीब 40-50 साल से चल रहा था, उसने अब जोरदार असर दिखाना शुरू कर दिया है। शुरू में आलोक तोमर के साथी उमेश जोशी ने उनके तेजी, हाजिर जवाबी, चुटीलापन, बौद्धिकता, सेंस ऑफ ह्यूमर, बच्चियों के प्रति प्यार को याद करते हुए यह भी बताया कि उन्हें गोल बैगन भर्ता (चोखा) बहुत पसंद था। जोशी ने आलोक की पढ़ने-लिखने की तीव्र गति को याद करते हुए जुमलेदार भाषा की खास तौर से सराहना की। कहा, उनके समर्थ लेखन का संकेत तभी मिल गया था जब प्रभाष जोशी ने उनके टेस्ट आलेख को संजो कर रख लिया था और सब को नमूने के तौर पर दिखाते थे।

   दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल, सांसद मो. सलीम, युवा रंगकर्मी चंद्रप्रकाश तिवारी, भरत तिवारी समेत अनेक वरिष्ठ, युवा, महिला साहित्यकार, पत्रकार, विचारक आदि कार्यक्रम के सहभागी / साक्षी बने।    

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