दक्षिण एशियाई राजनीति एवं सुरक्षा विशेषज्ञ पत्रकार और लेखक मायरा मैकडोनाल्ड की यह पुस्तक 1998 से दोनों देशों के बीच घटित विभिन्न घटनाओं को समेटे हुए है। इसमें पहाड़ पर भीषण संघर्ष से ले कर मैदान में सैन्य संघर्ष, विमान अपहरण से ले कर मुंबई आतंकवादी हमलों का जिक्र है।
लेखक कहता है कि भारत ने 1999 में काठमांडो से कंधार तक विमान अपहरण से ले कर 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हमले की सार्वजनिक घोषणा तक लंबा रास्ता तय किया है।
पाकिस्तान के पास कुछ के खिलाफ लड़ाई लड़ने के साथ ही कुछ जिहादियों का समर्थन छोड़ना असंभव था। वहां भारत के साथ संघंर्ष की विचारधारा इतने गहरे तक समाई है कि उसे उखाड़ फेंका नहीं जा सकता। जब कि भारत कभी कूटनीतिक संयम की जरूरत से नहीं भागा।
मैकडोनाल्ड के अनुसार दक्षिण एशियाई युद्ध में पाकिस्तान की हार भारत के लिए भी एक चेतावनी है। भारत ने थोड़े वक्त के लिए पुराने नियमों को एक नया आयाम दिया है। उसने नियंत्रण रेखा पार अपने हमले की घोषणा अंतरराष्ट्रीय एतराजों के बगैर की, साथ ही पाकिस्तान और अन्य देशों को यह आश्वस्त करने में जरा भी देर नहीं लगाई कि इन्हें आगे बढ़ाने का उसका कोई इरादा नहीं है और उसने यह सब अपनी राजनीतिक और आर्थिक मजबूती के दम पर किया जिसका जिहादी और परमाणु संपन्न पाकिस्तान के पास अभाव है।
किताब में कहा गया है कि शीतयुद्ध के अंत में बने जिहादियों के लिए अनुकूल माहौल को पाकिस्तान नियंत्रित कर पाने असफल रहा और 11 सिंतबर के हमले के बाद वह इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय विरोध के अनुसार कदम नहीं उठा पाया।
एजेंसी