सात मई को विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ प्रेस ब्रीफिंग के लिए आईं लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने हिंदी में और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने अंग्रेजी में पहले ही साफ कर दिया कि पिछली रात सिर्फ आतंकवाद के तय ठिकानों को गैर-इजाफाकून (लड़ाई न बढ़ाने वाली), संतुलित और आनुपातिक निशाना बनाया गया, किसी फौजी या आम लोगों के ठिकानों को नहीं छुआ गया। उधर, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में उनके वजीरे आजम शहबाज शरीफ बिना सबूत पांच भारतीय विमानों को गिराने के दावे के साथ जवाब पूरा होने की बात कर रहे थे। दोनों तरफ के ये बयान संकेत दे रहे थे कि यह लड़ाई या झड़प अल्पकालिक ही होनी है। अलबत्ता, दोनों ओर से यह जरूर कहा जा रहा था कि मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। इसलिए संघर्ष विराम ज्यादा दूर नहीं लग रहा था, चाहे दोनों ओर मीडिया के गैर-जिम्मेदाराना दावे कुछ भी हांका लगाते रहे हों।
नई दिल्ली में प्रेस ब्रिफिंग के दौरान विंग कमांडर व्योमिका सिंह, विदेश सचिव विक्रम मिसरी और लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी
यकीनन महज चार दिनों की इस झड़प में ही भारतीय सेना ने दिखा दिया कि उसे युद्ध तकनीक में न सिर्फ बढ़त हासिल है, बल्कि वह दुश्मन देश के भीतर भी अपने लक्ष्य बेध सकती है। बेशक, यह इसलिए हुआ कि बेहतर तकनीक वाले ड्रोन और क्रूज मिसाइलें सटीक और नियंत्रित ठिकाने पर मार करने में कामयाब रहीं। उधर, पाकिस्तान तोपखाने और विमानों से बमबारी करता रहा। इन हमलों को भी भारत ने तकनीक के सहारे काफी हद तक नाकाम कर दिया, क्योंकि एयर डिफेंस में बेहतर तकनीक वाले उपकरण थे। पाकिस्तान के ज्यादातर हमलों को हवा में ही उड़ा दिया गया। उनके एयर डिफेंस सिस्टम को जाम कर दिया गया। इस तरह पाकिस्तान को ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा।
फिर भी 10 मई को अचानक संघर्ष विराम के ऐलान ने चौंकाया। वजह यह थी कि भारतीय सशस्त्र बलों की साफ बढ़त दिख रही थी और पहलगाम में 26 सैलानियों के करीब से गोलियों से भून देने की आतंकी वारदात से लोगों में काफी गुस्सा था। मीडिया ने जो तुमुल खड़ा किया और बेसिरपैर का वितान बांधा था, उसे तो छोड़ ही देते हैं (देखें, साथ की स्टोरी, परदे पर उन्माद की अफीम), जिसके लिए सरकार को पहली दफा तीन-तीन एडवायजरी जारी करनी पड़ी। फिर, संघर्ष विराम का पहले ऐलान तीसरे पक्ष यानी अमेरिका की ओर से होना ज्यादा चौंकाने वाली बात थी। बेचारे, विदेश सचिव विक्रम मिसरी खामख्वाह उच्छृंखल ट्रोल आर्मी के इस कदर निशाने पर आए कि उन्हें अपने एक्स एकाउंट को प्राइवेट यानी गोपनीय करना पड़ा। खैर, इन सबसे भारतीय नेतृत्व की जिम्मेदारियों और जावबदेही में इजाफा होना लाजिमी था।
‘न्यू नार्मल’ या नई लाल रेखा
इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 मई को पाकिस्तान के साथ अब तक की छठी लड़ाई के अचानक थमने के दो दिन बाद राष्ट्र को संबोधित करने आए, तो उन्हें पता था कि यह उनके तीसरे कार्यकाल का निर्णायक पल है। उन्होंने तीन नए रणनीतिक मानक या ‘न्यू नार्मल’ स्थापित किए। उन्होंने कहा, “भारत हर आतंकवादी घटना को युद्ध की कार्रवाई मानेगा, किसी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा तथा निर्णायक हमला करेगा, और आतंकवाद की सरपरस्त सरकार तथा आतंकवाद के आकाओं के बीच कोई फर्क नहीं करेगा।” ऐसा नहीं है कि ये बातें पहले नहीं थीं, लेकिन नए मानक के रूप में दो-टूक शब्दों में नहीं कही गई थीं। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, ‘‘पिछले दो-ढाई दशकों से ये बातें रही हैं लेकिन इन्हें साथ जोड़ दिया गया है।’’
आतंकी ठिकाने ध्वस्तः पीओके में भिंबर
पाकिस्तान के साथ पांचवी लड़ाई या झड़प छब्बीस साल पहले, 1999 की गर्मियों में करगिल में हुई थी। तब प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की सरकार थी। तब भी उन्हें मजबूरन लड़ाई में उतरना पड़ा था। वैसे, मोदी ने पहले कार्यकाल (2014-2019) में ही पाकिस्तान के दुस्साहस के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला कर लिया था। पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह का जोर रणनीतिक संयम और कूटनीतिक दबाव बनाकर पाकिस्तान को मजबूर करने पर था। बकौल चिदंबरम, ‘‘उसका असर यह था कि 2008 के मुंबई हमले के बाद 2016 में उड़ी में सैन्य शिविर पर हमले तक आतंकवाद की कोई हरकत आठ वर्षों में नहीं हुई।’’ लेकिन सितंबर 2016 में उड़ी के सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के जवाब में मोदी ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार सर्जिकल स्ट्राइक का आदेश दिया। तीन साल बाद, फरवरी 2019 में पुलवामा में फिदायिन कार बम विस्फोट में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवानों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान के पख्तूनख्वा में बालाकोट में आतंकी ठिकाने पर बम गिराने के लिए वायु सेना के जेट विमानों को मंजूरी दी गई। पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर भारत के नए नजरिए का एकदम साफ इजहार था।
सेना का शौर्य
पहले दिन, 6-7 मई की दरमियानी रात तकरीबन 1.30 बजे सशस्त्र बलों ने न सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में, बल्कि 1971 के युद्ध के बाद पहली बार पाकिस्तान के गढ़ पंजाब प्रांत में नौ प्रमुख आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। उनमें दो प्रमुख आतंकी गुटों- बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद और लाहौर के पास मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय थे।
अगले दिन 7-8 मई की दरमियानी रात पाकिस्तानी फौज ने एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सैकड़ों ड्रोन के जरिये भारत पर हमला किया। भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने लगभग सभी ड्रोनों को इंटरसेप्ट करके नष्ट कर दिया। उसी रात भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में लाहौर और रावलपिंडी में स्थित पाकिस्तान की चीनी एचक्यू-9 एयर डिफेंस सिस्टम को ठप कर दिया। एक भारतीय ड्रोन रावलपिंडी स्टेडियम में गिरा, जिससे वहां चल रहा पाकिस्तान सुपर लीग का मैच रोकना पड़ा।
संघर्ष विराम के बाद भारतीय सेना के तीनों अंगों के वरिष्ठ अधिकारी
अगली रात 9 मई को पाकिस्तान ने भारत पर 500 से अधिक ड्रोन के जरिए कई एयरबेस और बारामूला, भुज, बाड़मेर, फिरोजपुर, अमृतसर और जम्मू जैसे 26 शहरों को निशाना बनाने की कोशिश की। लेकिन भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने लगभग सभी ड्रोन हवा में मार गिराए। पाकिस्तान ने चीन निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल पीएल-15 को दिल्ली की ओर दागा, लेकिन भारत ने उसे भी समय रहते इंटरसेप्ट कर सिरसा के पास निष्क्रिय कर दिया।
फिर, 9-10 मई की दरमियानी रात भारत ने पाकिस्तान के कई एयरबेस पर सटीक मिसाइल हमले किए। इन हमलों में पाकिस्तान के कम से कम नौ प्रमुख एयरबेस में नुकसान हुआ, जिनमें नूर खान, रहीम यार खान, रफीकी, सुक्कुर और सियालकोट जैसे रणनीतिक ठिकाने शामिल थे। इस तरह इन्हीं नुकसान की वजह से पाकिस्तान को मदद की गुहार लगानी पड़ी। भारतीय सेना ने इस कार्रवाई से साबित किया कि उसके पास उन्नत सैन्य उपकरण हैं, जिनका जवाब पाकिस्तान के पास नहीं है। पाकिस्तान जिस चीन की वायु सुरक्षा प्रणाली, मिसाइल और तुर्किए के ड्रोन को लाजवाब मान रहा था, वे उतने दमदार नहीं निकले या फिर पाकिस्तान के पास कुशल संचालकों की कमी थी। भारत ने दिखा दिया कि वह पाकिस्तान सरकार और फौज के केंद्र पर भी निशाना साध सकता है। नौसेना शायद कराची बंदरगाह की आवाजाही बंद कर सकती है, जिससे वह आर्थिक तौर पर लाचार हो सकता है।
तीसरे से अपील
विदेश मंत्री एस जयशंकर
कथित तौर पर शरीफ और मुनीर दोनों ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बात की, और अमेरिका से हस्तक्षेप करने और भारत को पीछे हटने के लिए कहने को कहा। चर्चा है कि उन्होंने कहा कि बड़ी लड़ाई छिड़ गई, तो पाकिस्तान अपने सभी विकल्पों का इस्तेमाल करने पर मजबूर हो जाएगा, जिसमें एटमी हथियारों भी हो सकते हैं। फिर रुबियो ने जयशंकर से बात की। जयशंकर ने कहा कि थल सेना के सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पहले हमले के 15 मिनट बाद पाकिस्तानी डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन किया और उन्हें बताया था कि भारत का आगे कोई हमला करने का इरादा नहीं है। लेकिन अब्दुल्ला ने कहा, पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करेगा। इसलिए रुबियो से जयशंकर ने कथित तौर पर कहा कि अगर पाकिस्तान संघर्ष विराम चाहता है, तो वह डीजीएमओ हॉटलाइन के जरिए कहे। 10 मई को अब्दुल्ला ने घई को फोन किया और कहा कि पाकिस्तान लड़ाई रोकना चाहता है। घई ने तीसरे पहर 3.35 बजे अब्दुल्ला को बताया कि भारत तैयार है। और इस तरह 88 घंटों की झड़प रुक गई। इस बारे में दोनों तरफ के दावे-प्रतिदावे हैं और उनमें कई विरोधाभास भी हैं।
संघर्ष विराम का विवाद
भारत इसलिए मान गया क्योंकि वह बड़ी लड़ाई नहीं चाहता था। ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग में पहले ही दिन कहा गया था कि लक्ष्य सिर्फ यह जाहिर करना है कि आतंकी वारदातें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। पाकिस्तान की शह से चलने वाली आतंकवादी हरकतों के लिए उसे कीमत चुकानी पड़ेगी। हालांकि, भारत में लोग यह देख हक्का-बक्का रह गए कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संघर्ष विराम की घोषणा पहले ही सोशल मीडिया एक्स पर विराम की सूचना पोस्ट कर दी, और संघर्ष विराम कराने का पूरा श्रेय लेने लगे। बदतर यह था कि रुबियो ने एक्स पर अपने पोस्ट में दावा किया कि भारत और पाकिस्तान दोनों “तीसरे तटस्थ देश में तमाम मुद्दों पर बातचीत करने” पर तैयार हो गए हैं। ट्रम्प लगातार कहते जा रहे हैं। उन्होंने एक में दावा किया कि उन्होंने “एटमी टकराव” रुकवा दिया, और दोनों देशों के नेताओं के साथ मिलकर काम करने की बात कही, ताकि “एक हजार साल से जारी कश्मीर के मुद्दे का कोई हल निकले।” इससे भी ज्यादा किरकिरी कराने वाला उनका यह बयान था कि मैंने कहा, “सुनो, एटमी मिसाइलों का नहीं, उन मामलों और सामान में होड़ करो, जिसे खूबसूरती से बनाते हो।” जो बात सबसे ज्यादा खटकी वह यह थी कि ट्रम्प प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान को एक साथ नत्थी कर दिया, एक ही तराजू में बैठा दिया।
असल में दोनों देशों के बीच पहले दौर के हमलों के बाद अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वांस ने 9 मई को प्रधानमंत्री मोदी से बात की और कहा कि पाकिस्तान लड़ाई को बड़े स्तर पर ले जाने की सोच रहा है। कहते हैं, वांस की फिक्र यह थी कि दोनों देश एटमी ताकत हैं, इसलिए लड़ाई बढ़ी तो भारी तबाही हो सकती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कथित तौर पर नेशनल कमान अथॉरिटी की बैठक बुलाकर अपने इरादे का संकेत दे दिया था। हालांकि बाद में बताया गया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। लेकिन बीबीसी के एक सवाल के जवाब में पाकिस्तानी फौज के अभियान महानिदेशक ने इस पर कोई साफ जवाब नहीं दिया। यह अथॉरिटी एटमी हथियारों की तैनाती का फैसला करने वाली सर्वोच्च संस्था है, जिसके शरीफ अध्यक्ष हैं और तीनों सेना प्रमुख सदस्य। वांस और रुबियो की जो भी बात हुई हो मगर शायद इस पर सहमति बन गई कि लड़ाई लंबी खींचने का कोई औचित्य नहीं है।
पाकिस्तान में श्रद्धांजलिः पंजाब के मुरीदके में मारे गए संदिग्ध आतंकवादियों के जनाजे में सियासी नेता और फौज के आला अधिकारी
लेकिन देश में मोदी सरकार के इस अमेरिकी हस्तक्षेप पर चुप्पी या सीधे खंडन न करने से विवाद उठ खड़ा हो गया। विपक्ष और कई हलकों में यह सवाल मुखर हो उठा कि सरकार बताए कि असलियत क्या है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस पर तीखे सवाल उठाए और फौरन सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाकर सफाई देने की मांग की। यह विवाद जयशंकर के प्रेस को दिए एक बयान से और तीखा हो गया। कथित तौर पर जयशंकर ने कहा कि जवाबी कार्रवाई से पहले पाकिस्तान को बता दिया गया था कि सिर्फ आतंकी ठिकानों पर ही निशाना साधा जाएगा। इसे विपक्ष और खासकर देश के साथ गद्दारी बताया और कहा कि सेना की कार्रवाई के पहले पाकिस्तान को कैसे आगाह किया जा सकता है। हालांकि जयशंकर ने कहा कि उन्हें गलत उद्घृत किया गया। शायद वे आतंकी ठिकानों पर हमले के बाद डीजीएमओ घई के फोन की बात कहना चाहते थे।
इस मामले में कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एश्लेम टेलिस का मानना है कि आम धारणा के उलट भारत और पाकिस्तान दोनों बेमन से लड़ाई में उतरे थे। उनके हिसाब से, “मोड़ तब आया, जब दोनों पक्षों को लग गया कि उन्होंने एक-दूसरे को पर्याप्त नुकसान पहुंचा दिया है। कुछ मौकों पर, लड़ाई के मकसद से आपके विकल्प निकलते हैं और, यह मौका अमेरिका ने मुहैया कराया। इसके लिए, रुबियो को श्रेय देना चाहिए।”
हालांकि, मोदी ने ट्रम्प के दावों को परोक्ष रूप से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “भारत का रुख एकदम स्पष्ट है, आतंक और वार्ता, व्यापार और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते।” उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सिंधु जल संधि पर रोक तभी हटेगी जब पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम लगाएगा। उन्होंने कहा, “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।” कश्मीर मुद्दे पर मोदी का कहना था, “मैं वैश्विक बिरादरी को बताना चाहूंगा कि हमारी घोषित नीति है, अगर पाकिस्तान के साथ बातचीत होगी, तो वह सिर्फ आतंकवाद पर होगी, वह सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर होगी।”
वैसे, अमेरिकी सरकार के नेताओं के दावों से पाकिस्तान में जरूर दम भर दिया है। शहबाज शरीफ ने दावा किया कि न सिर्फ भारत के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया गया, बल्कि उन्हें उसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने छह भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें पांच हमले की पहली रात को ही गिर गए। भारत ने अब तक इस आरोप का खंडन नहीं किया है। हालांकि वायु सेना अभियान के महानिदेशक एयर मार्शल ए.के. भारती ने कहा कि सभी भारतीय लड़ाकू पायलट सुरक्षित हैं, लेकिन “नुकसान लड़ाई का हिस्सा हैं।”
कूटनीतिक कार्रवाई
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की जवाबी कार्रवाई से पहले अमेरिका और चीन सहित प्रमुख विश्व शक्तियों को आगाह कर दिया था। भारत पहले ही राजनैतिक विकल्प का इस्तेमाल कर चुका था। उसने पहलगाम हमले के फौरन बाद 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया, जो चार बड़ी लड़ाइयों के बावजूद कायम थी। सिंधु का पानी पाकिस्तान में सिंचाई के लिए, खासकर पंजाब और सिंध जैसे सियासी तौर पर अहम प्रांतों में बेहद जरूरी है। हालांकि, संधि के स्थगित होने से पानी की धारा फौरन नहीं रुकेगी, लेकिन उसकी समीक्षा करने की भारत की धमकी से पाकिस्तानी लीडरान पर जबरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा।
लेकिन विपक्ष यह सवाल उठा रहा है कि पाकिस्तान के साथ तो चीन, तुर्किए और अजरबैजान खुलकर साथ आए, भारत के साथ कोई नहीं आया। ट्रम्प भी 8 मई को कह चुके थे कि वे दोनों के बीच नहीं पड़ेंगे। लेकिन फिर 9 मई को आइएमएफ से पाकिस्तान को अरबों डॉलर का कर्ज मिल गया और चौबीस देशों में सिर्फ भारत ने मतदान से बहिष्कार किया, उसने भी विरोध में वोट नहीं डाला था। इन तमाम सवालों से संघर्ष विराम के बाद मोदी सरकार जरूर घिरती गई है।
इन सवालों की वजह से ही शायद सरकार ने 51 सांसदों का सर्वदलीय जत्था देश का पक्ष रखने के लिए 33 देशों में भेजा है। यह भी बिना विवाद के नहीं रह सका। कांग्रेस ने सवाल उठाया कि उसने जिनके नाम दिए थे, उनके बदले शशि थरूर, मनीष तिवारी वगैरह को ले जाया गया। खैर, अब मामला व्यापार पर भी आ गया है।
व्यापार का मामला
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल व्यापार पर बात करने अमेरिका में हैं। जो भी सौदे हों, मगर राफेल गिरने की अफवाह से अमेरिका शायद अपने एफ-35 को बेचने का दबाव बना रहा है, जो उससे भी महंगा है। इसके अलावा ट्रम्प ने 15 मई को कतर में कहा, “कल मुझे (एप्पल के सीईओ) टिम कुक से थोड़ी दिक्कत हुई। मैंने कहा, ‘‘टिम, तुम मेरे दोस्त हो। तुम 500 अरब डॉलर लेकर यहां आ रहे हो, लेकिन अब तुम पूरे भारत में बनाने जा रहे हो। मैं नहीं चाहता कि तुम भारत में बनाओ’।” फिलहाल चेन्नै और बेंगलूरू इकाइयों में बना एप्पल आइफोन अमेरिका में करीब 25 प्रतिशत तक बिकते हैं। एप्पल के निवेश से भारत में यह उम्मीद की जा रही थी कि चीन से अमेरिकी तनाव बढ़ता है तो भारत निवेश ठिकाने के तौर पर उभर सकता है।
इसलिए ये संकेत हैं कि व्यापार पर बातचीत भी आसान नहीं हो सकती है। इस पर नजर रखनी होगी कि भारत कितनी रियायत दे सकता है या अमेरिका कितनी ढील दे सकता है। जो भी हो, पाकिस्तान में सेना ने तो अपना जज्बा दिखाया लेकिन अब सरकार को विदेश मोर्चे को भी फतह करके अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी, क्योंकि आज की दुनिया में आर्थिक ताकत ही सबसे बड़ी है और उसी से रणनीतिक बढ़त और प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा होती है। देखा जाए, आगे भू-राजनीति और देश के अंदर सियासत क्या रंग लेती है।
साथ में राजीव नयन चतुर्वेदी की रिपोर्ट