दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जेनेटिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को बीमा से बाहर रखने संबंधी नियम भेदभावपूर्ण हैं और भारतीय बीमा विनियामक व विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) को इसे हटाने पर विचार करना चाहिए ताकि हृदय, रक्तचाप व मधुमेह पीड़ित लोगों के बीमे के दावे खारिज न हों।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में संसद को निर्णय लेना चाहिए ताकि ऐसे लोगों को बीमे का फायदा मिल सके। हालांकि बीमा कंपनियों को तार्किक तथ्यों के आधार पर समझौते बनाने का अधिकार है लेकिन यह मनमाने तरीके और जेनेटिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को अलग-थलग करके नहीं बनाए जाने चाहिए।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने फैसले में कहा, “बीमा कंपनी द्वारा जेनेटिक डिसऑर्डर को पॉलिसी के दायरे से बाहर रखना भेदभाव वाला, अस्पष्ट और असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करता है।”
कोर्ट ने यह निर्णय जयप्रकाश तायल बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में दिया है। तायल एक प्रकार की जेनेटिक बीमारी हाइपरट्रोफिक ऑब्सट्रक्टिव कार्डियोमायोपैथी से पीड़ित हैं। बीमा कंपनी ने इस आधार पर उन्हें बीमे का फायदा देने से मना कर दिया था कि वह जेनेटिक बीमारी से पीड़ित है और ऐसी बीमारियों को बीमे में कवर नहीं किया जा सकता। निचली अदालत ने तायल के पक्ष में अपना निर्णय दिया था जिसे बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।