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‘भारत में मीडिया के लिए खतरनाक माहौल’

भारत पत्रकारों पर हमले के मामले में विश्व में 13वें नंबर पर है और भारत में उत्तर प्रदेश इस मामले में पहले नंबर एक पर। हाल ही में झारखंड में पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह और उसके बाद बिहार के सीवान जिले में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या ने देश में पत्रकारों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
‘भारत में मीडिया के लिए खतरनाक माहौल’

अमेरिकी संस्था ने भारत में पत्रकारों की हत्या के मामले में जांच की मांग की है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स एशिया प्रोग्राम के वरिष्ठ रिसर्च एसोसिएट सुमित गलहोत्र ने कहा है कि पत्रकारों की हत्या के मामले में पुलिस जांच हो, वहीं हत्यारों को गिरफ्तारी या सख्त कैद की सजा के बिना जांच से गलत संदेश जाएगा। हिंदी अखबार हिंदुस्तान के बिहार के सीवान जिले के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन को कल शाम गोली मार दी गई थी जब वह अपनी मोटरसाइकिल से एक फल बाजार के पास से निकल रहे थे। 45 साल के रंजन की अस्पताल ले जाते समय रास्ते में मौत हो गई। इस घटना से 24 घंटे से भी कम समय पहले झारखंड के के चतरा जिले के देवरिया में अनजान लोगों ने एक समाचार चैनल के पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह (35) की गोली मारकर हत्या कर दी। गलहोत्र ने कहा कि भारत में पत्रकारों की हत्या करने वालों पर मुकदमे के खराब रिकॉर्ड से मीडिया के लिए खतरनाक माहौल बनता जा रहा है।

 

उधर वित्त मंत्री अरूण जेटली ने दोनों पत्रकारों की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की और इसकी निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग की है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले जेटली ने इस बारे में ट्वीट किया है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राहुल जलाली और सचिव नदीम अहमद काजमी ने दोनों पत्रकारों की हत्या को जंगलराज बताया है। वीमेंस प्रेस क्लब की अध्यक्ष सुषमा रामचंद्रन और सचिव अरुणा सिंह ने भी मामले की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाऱ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

 

कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ जुड़े और इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम के अध्यक्ष अजय सिंह का कहना है कि सरकार चाहे किसी की भी हो पत्रकारों को सुरक्षा नहीं दी जा रही। उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और छतीसगढ़ में पत्रकार खौफ में काम कर रहे हैं जबकि वे समाज और सरकार का ही काम करते हैं। अजय का कहना है कि भारत में पत्रकारों की हालत अफगानिस्तान से भी खराब है लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता। सरकार को इस सिलसिले में पत्रकारों के कामकाज को लेकर नियम तय करने चाहिए। दुर्घटना के समय संस्थान पत्रकार को अपना एंप्लॉय मानने तक से इनकार कर देते हैं। यही नहीं उन्हें भी भीड़ का हिस्सा मानकर बहुत दफा पीट दिया जाता है लेकिन पत्रकारों को मुआवजा तक नहीं मिलता।

 

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