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यह औरतों का हक है या गुलामी

सोशल मीडिया की बहसें कहीं भी होने वाली बहसों से तेज और धारदार होती हैं। बोर्ड रूम में महिला कर्मचारी की मौजूदगी और इस मौजूदगी में भी यदि महिला गर्भवती है तो यह बहस कई बहसों को जन्म दे सकती है।
यह औरतों का हक है या गुलामी

कपड़े बनाने वाली कंपनी मिंत्रा ने कुछ महीनों पहले एक विज्ञापन बनाया था, बोल्ड इज ब्यूटीफूल। इसमें लेस्बियन सहेलियां एक लड़की के माता-पिता के आने का इंतजार कर रही हैं। दूसरी लड़की आशंकित है और पूछती है, तुम्हें यकीन है वो मान जाएंगे। दूसरी लड़की आत्मविश्वास से कहती है, मुझे हम दोनों पर यकीन है।

इसी विज्ञापन की अगली कड़ी में राधिका आप्टे एक गर्भवती स्त्री है और बॉस उसे बताती है कि इस साल उसे प्रमोशन नहीं मिला है। कारण? वह गर्भवती है और उसे प्रमोशन देने का मतलब है, क्लाइंट को नाराज करना क्योंकि उसे ऐसा आर्किटेक्ट चाहिए जो चौबीस घंटे काम कर सके। इससे पहले वह इस प्रोजेक्ट पर अपना पसीना बहा चुकी है।

यह विज्ञापन लोगों का ध्यान खींच रहा है क्योंकि यह एक मेहनती आर्किटेक्ट को इसलिए प्रमोशन नहीं मिला क्योंकि वह गर्भवती है। वह नौकरी छोड़ कर अपना काम शुरू कर रही है क्योंकि उसे भरोसा है कि वह दोनों काम कर सकती है। इस विज्ञापन पर बहस इसलिए क्योंकि कई महिलाओं का मानना है कि वह औरत हैं और औरत ही रहना चाहती हैं। आखिर वे मर्द क्यों बनें। स्त्री होते हुए, उनकी परिस्थित के साथ ही आखिर उन्हें उनका वाजिब हक क्यों नहीं मिलना चाहिए। आखिर में वह गर्भवती महिला कर्मचारी नौकरी छोड़ कर अपना काम शुरू कर रही है, क्योंकि उसके कामकाज को उसके गर्भ से आंका गया है।

यह औरतों की आजादी से ज्यादा गुलामी का विज्ञापन है क्योंकि जो काम पुरुष कर नहीं सकता स्त्री वह काम कर रही है। जब स्त्री इतना अनोखा काम कर रही है तो फिर साधाराण काम को लेकर इतना हो हल्ला क्यों।

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