आसमान पर घटने वाली खगोलीय घटनाएं इंसान के लिए हमेशा से जिज्ञासा का विषय रही है। आसमानी उथल-पुथल हमारा कौतूहल बढ़ाता रहा है। अगर आपकी दिलचस्पी भी इन आकाशीय घटनाओं में हो तो आप भी एक अद्भुत नजारे का गवाह बन सकते हैं। दरअसल 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण आज यानी 27 जुलाई को लग रहा है। इस पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं।
देशभर के कई इलाके में पूर्ण चंद्रग्रहण को देखने के लिए कई तरह के प्रबंध किए गए हैं। बताया जा रहा है कि भारत में चंद्रग्रहण का प्रभाव देर रात 10.53 बजे से ही दिखना शुरू हो जाएगा।
भारत में शुक्रवार-शनिवार रात पूरे 1 घंटे 42 मिनट और 57 सेकंड तक पूर्ण चंद्रग्रहण देखा जा सकेगा। इसकी कुल अवधि 6 घंटा 14 मिनट रहेगी लेकिन पूर्ण चंद्रग्रहण की स्थिति 103 मिनट तक रहेगी। भारत में यह रात 11 बजकर 54 मिनट से स्पर्श कर लगभग 3 बजकर 54 मिनट पर पूर्ण होगा।
मंगल ग्रह 21वीं शताब्दी के सर्वाधिक लंबे चंद्रग्रहण का साक्षी बनेगा, वहीं आसमानी आतिशबाजी इस घटना को रोमांचकारी बनाएगी। इस रात डेल्टा एक्वारिड्स उल्का वृष्टि चरम पर रहने वाली है। एक ही रात में होने जा रही तीन आकर्षक खगोलीय घटनाएं इसे यादगार बनाने जा रही हैं।
मंगल पर निगाहें
आज चंद्र ग्रहण जरूर हो रहा है लेकिन लोगों की निगाहें मंगल ग्रह पर भी रहेगी। क्योंकि मंगल की चमक अपनी औसत चमक से लगभग 12 गुना ज्यादा होगी। आसमानी आतिशबाजी में डेल्टा एक्वारिड्स उल्का वृष्टि 27 जुलाई की रात चरम पर रहने वाली है। इसके बाद भी इसे अगस्त माह तक देखा जा सकेगा।
इसलिए होता है ग्रहण?
चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन पड़ता है। इसका कारण है कि पृथ्वी की कक्षा पर चंद्रमा की कक्षा का झुके होना। यह झुकाव लगभग 5 डिग्री है इसलिए हर बार चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश नहीं करता। उसके ऊपर या नीचे से निकल जाता है।
वहीं सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन होते हैं क्योंकि चंद्रमा का आकार पृथ्वी के आकार के मुकाबले करीब 4 गुना कम है। इसकी छाया पृथ्वी पर छोटी आकार की पड़ती है इसीलिए पूर्णता की स्थिति में सूर्य ग्रहण पृथ्वी के एक छोटे से भाग से ही देखा जा सकता है। लेकिन चंद्र ग्रहण की स्थिति में धरती की छाया चंद्रमा के मुकाबले काफी बड़ी होती है। लिहाजा इससे गुजरने में चंद्रमा को ज्यादा समय लगता है।
दुनिया भर में प्रचलित मान्यताएं
चंद्रग्रहण को लेकर भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। भारत में इसे राहु-केतु से जोड़कर देखा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शंका हुई तो वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा।
देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने दानव को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का ग्रास कर लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है।
वहीं अफ्रीका में, चंद्रग्रहण को लेकर मिथ है कि चंद्रग्रहण के समय चांद और सूर्य के बीच लड़ाई होती है। ये मान्यता टोगो और बेनिन के लोगों के बीच सबसे ज्यादा प्रचलित है। उनका मानना है कि इस समय लोगों को अपने झगड़ें खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
जबकि खगोल शास्त्र के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्र ग्रहण होता है।