"केंद्र और राज्य में ही नहीं, भाजपा और महाविकास अघाड़ी के बीच और अघाड़ी सहयोगियों के बीच कई मोर्चे खुले"
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई की प्रदूषित मीठी नदी में 2019 के आखिरी महीनों में विधानसभा चुनावों के बाद से न जाने कितना पानी बह गया होगा, फिर भी वह वहां लगभग बिलानागा चौंकाऊ सियासी हलचलों की बदलती करवटों की बराबरी शायद मुश्किल से ही कर पाए। फिर भी पिछले पखवाड़े की घटनाएं कुछ खास हैं। शिवसेना से कांग्रेस और अब भाजपा से लंबे अरसे किनारे पड़े नारायण राणे को अब मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल गई है। इधर विपक्ष के नेता देवेंद्र फडऩवीस का मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिवसेना के बारे में कुछ मिठास भरी बातें और शिवसेना नेता संजय राउत के दोस्ताना बयानों के भी सियासी अर्थ निकाले जा सकते हैं। लेकिन यह भ्रम अगर पाल रहे हैं कि अदावत कुछ धीमी हुई है तो 5 जुलाई को भाजपा के करीब एक दर्जन विधायकों के साल भर के लिए सदन से निलंबन को याद कर लीजिए और फिर राकांपा के नेता, पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और उप-मुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की सरगर्मी की ओर नजर डाल लीजिए।
चाहे तो शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस के महा विकास अघाड़ी में कुछ खटराग और केंद्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता की राकांपा प्रमुख शरद पवार की पहल पर भी गौर कर सकते हैं। लेकिन सबसे सरगर्म तो केंद्रीय एजेंसियों की धमक है। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के कथित 100 करोड़ रुपये वसूली के आरोप में फंसे अनिल देशमुख के अलावा अब उप-मुख्यमंत्री अजित पवार भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निशाने पर हैं। जांच एजेंसी ने कोऑपरेटिव बैंक घोटाला मामले में पवार से जुड़ी 65.75 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर ली है। इनमें कोरेगांव के चिमनगांव स्थित चीनी मिल की जमीन, प्लांट, इमारत और मशीन शामिल हैं। मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 2019 में इस घोटाले से संबंधित एफआइआर दर्ज की थी, तब भाजपा की सरकार थी। उसके बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया। जांच एजेंसी के मुताबिक 2010 में महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक ने जरंडेश्वर सहकारी चीनी कारखाने को नीलाम किया था, लेकिन उसकी कीमत कम दिखाई गई। उस वक्त पवार बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में शामिल थे। सहकारी चीनी कारखाने को गुरु कमोडिटी सर्विसेस लिमिटेड ने खरीद लिया और उसके बाद उसे जरंडेश्वर सहकारी चीनी कारखाने को लीज पर दे दिया। हालांकि, इस कार्रवाई को अजित पवार ने राजनीति से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा, ‘‘जांच कीजिए, लेकिन पारदर्शी तरीके से। इसके पीछे का राज, जनता जानती है। पहले घोटाला दिखाओ, फिर मुझ पर आरोप लगाओ।’’
आउटलुक से बातचीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री, शिवसेना प्रवक्ता और लोकसभा सांसद अरविंद सावंत कहते हैं, ‘‘ईडी सिर्फ उन्हीं राज्यों में सक्रिय है, जहां गैर-भाजपा सरकारें हैं। इस राजनीति प्रेरित प्रहसन से कुछ नहीं होने वाला। सरकार पूरे पांच साल तक चलेगी। भाजपा के मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे।’’ केंद्रीय एजेंसियों की सूची में आगे शायद और नाम जुड़ जाएं। राज्य भाजपा इकाई ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पत्र लिखकर अजित पवार और मुंबई के बर्खास्त पुलिसकर्मी सचिन वाजे द्वारा मंत्री अनिल परब पर लगाए गए आरोपों की जांच सीबीआइ से करवाने की मांग की है। राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी और ठाकरे सरकार के बीच तो ठना-ठनी जारी ही है। कोश्यारी ने भाजपा की मांग को जायज ठहराते हुए ओबीसी आरक्षण, भ्रष्टाचार सरीखे कई अन्य मुद्दों पर पत्र लिखा है।
इसके अलावा बैठकों के दौर और नेताओं के बयानों ने कई कयासों को जन्म दे दिया है। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की मुलाकात के बाद शुरू हुई। 8 जून को मोदी और ठाकरे की बैठक के बाद राज्य विधानसभा का गणित टटोला जाने लगा। आउटलुक से वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विजय चोरमरे कहते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की मुलाकात कोई आश्यर्य करने वाली बात नहीं है। लेकिन, जिस तरह से जांच एजेंसियां सक्रिय हो गई हंै, वह परेशानी का कारण बन सकता है। फिर भी सरकार गिरने की संभावना न के बराबर है। यह मध्य प्रदेश या कर्नाटक नहीं है।’’
लेकिन भाजपा मी मानें तो सरकार अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली है। पूर्व मंत्री और भाजपा महासचिव चंद्रशेखर बावनकुले कहते हैं, ‘‘अभी और भ्रष्टाचार के चि_े निकलेंगे। पूरी सरकार भ्रष्ट है। देशमुख के खिलाफ जांच के आदेश हाइकोर्ट ने दिए हैं। एजेंसी अपना काम कर रही है।’’ लेकिन अरविंद सावंत कहते हैं, ‘‘पार्टियों के भीतर भले ही मतभिन्नता है लेकिन हम अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। केंद्र जानबूझकर सरकार को अस्थिर करना चाह रहा है।’’
लेकिन अघाड़ी सहयोगियों के बीच खटपट मतभिन्नता से कुछ बढक़र लगती है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने महाराष्ट्र राज्य खनन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमएसएमसी) पर कोयला की आपूर्ति के लिए निजी कंपनी के चयन प्रक्रिया में अनियमितता के आरोप लगा दिए और ठाकरे सरकार से निविदा प्रक्रिया की जांच कराने की मांग की है। गौरतलब है कि ऊर्जा से संबंधित विभाग कांग्रेस नेता ओर कैबिनेट मंत्री नितिन राउत के पास है। नाना पटोले यह भी कह चुके हैं कि आगामी सभी छोटे-बड़े चुनावों में पार्टी अकेले लड़ेगी। हालांकि यह भी खबर है कि कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व ने नाना पटोले से बड़बोलेपन से बाज आने को कहा है। उधर, शिवसेना-राकांपा साथ मिलकर चुनाव लडऩे की बात कह रही है। आउटलुक से कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत कहते हैं, ‘‘कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए ये बातें कही जा रही है। लेकिन, आलाकमान ने पटोले को इससे बचने की नसीहत दी है। स्थानीय स्तर पर पार्टी को मजबूत करने की यह रणनीति है। इसे मौजूदा सरकार या विधानसभा चुनाव से जोडक़र नहीं देखा जाना चाहिए। पहले भी हम गठबंधन में रहते हुए अलग-अलग चुनावों अकेले लड़ते रहे हैं। हमारा मुख्य मकसद भाजपा को राज्य और केंद्र में रोकना है।’’
दरअसल, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के दिल्ली आवास पर 22 जून को केंद्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की पहल राष्ट्र मंच के बैनर तले बुलाई गई, जिसमें कई विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए। इसमें कांग्रेस और शिवसेना से कोई नहीं था। तो, क्या कोई अलग खिचड़ी पक रही है या प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी की जा रही है? सचिन सावंत कहते हैं, ‘‘कौन प्रधानमंत्री होगा, यह तय होने में लंबा वक्त है। अभी लोकतंत्र विरोधी भाजपा शासित नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ मजबूत विपक्षी की जरूरत है।’’
यही नहीं, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और शरद पवार के बीच कई दौर की मुलाकात से भी कई तरह के कयास लगने लगे हैं। वहीं, कई हफ्ते से ठाकरे-पवार के रिश्तों में खटास दिखाई दे रही है। हालांकि, इसे पाटने के लिए पवार ने कुछ दिनों पहले उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। राजनीतिक जानकार इसकी वजह पीएम मोदी-ठाकरे और कथित अहमदाबाद में पवार-शाह की मुलाकात को मानते हैं। विजय चोरमरे कहते हैं, ‘‘जब कथित तौर पर पवार और शाह की मुलाकात हुई तो एनसीपी के खिलाफ दबाव बनाने के लिए शायद पीएम मोदी-ठाकरे की मुलाकात हुई। भाजपा शिवसेना या राकांपा के साथ आती है तो इससे नुकसान भाजपा को ही होगा और शायद यही सलाह पूर्व मुख्यमंत्री फडऩवीस ने दी है।’’ हालांकि, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा था कि ठाकरे गठबंधन पर विचार करते हैं तो पार्टी सोच सकती है। यह बयान शिवसेना विधायक प्रताप सरनाइक द्वारा उद्धव ठाकरे को लिखे गए पत्र के बाद आया था। एमएलए सरनाइक ने यहां तक कहा था कि राकांपा-कांग्रेस को छोड़ शिवसेना भाजपा संग सरकार बनाए। जांच एजेंसी परेशान कर रही है। अरविंद सावंत कहते हैं, ‘‘इनका काम ही है विधायकों को डरा-धमकाकर अपने पाले में कर लेना।’’
बहरहाल, महाराष्ट्र और देश में एक ही साल 2024 में चुनाव होने हैं। इसलिए यह सियासी उठापटक और सियासी हलचल जल्दी थमने वाली नहीं लगती।