पिछले दिनों फोर्ड फाउंडेशन के प्रेसिडेंट डारेन वॉकर को प्रधानमंत्री ने मुलाकात का समय न देकर अपनी आर्थिक नीतियों और राजनीति के प्रतिकूल गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को सार्वजनिक कार्यक्षेत्र से बाहर करने के अपनी सरकार के रवैये का मुख्य सूत्रधार होने का स्पष्ट संकेत दिया। अपनी संस्था की पैरवी करने भारत आए वॉकर ने इनफोसिस के अध्यक्ष एंव फोर्ड फाउंडेशन के बोर्ड सदस्य नारायण मूर्ति और कविता रामदास के साथ प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा था। रामदास अमेरिका की स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के फ्रीमैन स्पॉग्ली इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज में सामाजिक उद्यम के कार्यक्रम की निदेशक हैं। सूत्रों के अनुसार मोदी से मुलाकात का समय न देकर प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें विशेष सचिव नृपेंद्र मिश्र से मिलने को कहा। इस मुलाकात से नई फंडिंग नीति और विदेशी दाता संस्थाओं के बारे में प्रस्तावित कड़ी सरकारी नीति में मिश्र की भी निर्णायक भूमिका का संकेत मिलता है।
सूत्रों के अनुसार अपनी मुलाकात में मिश्र फोर्ड फाउंडेशन अध्यक्ष और कविता रामदास से नजरें मिलाने से बचते रहे और ज्यादातर समय नारायण मूर्ति से मुखातिब रहे। शायद नामी व्यापार समूह से जुड़े होने के कारण मूर्ति की वह उपेक्षा नहीं कर सकते थे। लेकिन वॉकर और रामदास के प्रति वार्ता के दौरान अपने रुख से उन्होंने गैर दोस्ताना सरकारी रवैये का संकेत जरूर दिया।
सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस की तीस्ता सेतलवाड के खिलाफ फौजदारी मामला तेज करना, हाई कोर्ट से मिली दो-दो राहतों के बावजूद ग्रीनपीस और उसकी भारत प्रमुख प्रिया पिल्लै के खिलाफ नई प्रशासनिक कार्रवाइयों, विदेशी सिविल समाज कार्यकर्ताओं को वैध वीजा के बावजूद भारत पहुंचते ही उलटे विमान वापस भेज देना और हजारों एनजीओ, जिनमें आश्चर्यजनक रूप से विश्वविद्याल, बार एसोसिएशन और अस्पताल तक शामिल किए गए हैं, के आयकर एवं खुफिया जांच के दायरे में होने की मीडिया में साल भर से लगातार खबरें जारी करने के बाद अब लगभग साढ़े चार हजार एनजीओ की एक साथ विदेशी अनुदान नियामक कानून के तहत मान्यता रद्द करके सरकार ने बता दिया है कि वह अपनी नीतियों और राजनीतिक हितों के प्रतिकूल एनजीओ को सार्वजनिक कार्यक्षेत्र से बाहर करने को लेकर कितनी गंभीर है।
इस क्रम में पूरे स्वयंसेवी सामाजिक क्षेत्र और सार्वजनिक कार्यक्षेत्र की नजर अब इस पर है कि देखें सरकार एनजीओ फंडिंग के लिए क्या नई नीति अपनाती है। नई नीति बनाने की अपनी मंशा केंद्र सरकार इस माह जाहिर कर चुकी है और कह चुकी है कि यह नीति मध्य जून के आसपास तैयार हो जाएगी। नई फंडिंग नीति के बारे में मोदी सरकार के करीबी दायरे में दो तरह की राय है। इन दोनों विकल्पों में चयन का दारोमदार अब नृपेंद्र मिश्र के पाले में है।
सख्त राय की पैरोकारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में देश का सुरक्षा प्रतिष्ठान और कॉरपोरेट जगत का सबसे प्रभावशाली तबका कर रहा है। इससे इत्तफाक रखने वाले मधु किश्वर और गोपालकृष्ण पै जैसे सार्वजनिक कार्यक्षेत्र के बुद्धिजीवी भी हैं। किश्वर और पै ने कई दफा अपने ट्वीटों में सामाजिक क्षेत्र के लिए विदेशी फंडिंग को अनावश्यक और हानिकारक बताया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी इस विचार को व्यापक घोषित समर्थन है। हालांकि, संघ के अब खुद कई विदेशी और प्रवासी भारतीय वित्त पोषित एनजीओ संस्थान हैं। सुरक्षा प्रतिष्ठान में भी विदेशी दाता पूंजी प्रतिबंधित करने से लेकर उसके प्रवाह पर सख्त नियंत्रण संबंधी मत हैं। खुफिया विभाग ने एनजीओ की काली सूची जारी कर अपना रुझान कभी का जाहिर कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार, कारपोरेट क्षेत्र का एक हिस्सा और भारत के वित्त मंत्रालय में एक प्रभावशाली तबका विदेशी दान दाताओं के मामले में ज्यादा अनुदार रवैये की उपयोगिता के बारे में संशय रखता है। उनकी राय में सामाजिक क्षेत्र में विदेशी दाता पूंजी के प्रति ज्यादा अनुदार रुख प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को हतोत्साहित करेगा। ऐसी कारपोरेट राय की अगुवाई नारायण मूर्ति करते हैं। देखें नृपेंद्र मिश्र की पंचायती क्या रंग लाती है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार विदेश मंत्रालय ऐसी व्यवस्था का प्रारूप तैयार कर रहा है कि विदेशों में भारतीय दूतावास काली सूची में दर्ज ऐसे विदेशी कार्यकर्ताओं को वहीं भारत के लिए रवाना होने से रोका जा सके। इसलिए कि उनके भारत पहुंचने के बाद उन्हें वापस भोजने से विदेशों में भारत की बहुत किरकिरी होती है।
(नीलाभ मिश्र का नजरिया आप ट्विटर पर भी पढ़ सकते हैं। फोलो करें @neelabh_outlook )