पश्चिम बंगाल में राज्य विधानसभा चुनावों से पहले, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार में नीतीश मंत्रिमंडल में पार्टी के जाने-माने चेहरे सैयद शाहनवाज हुसैन की वापसी कराई है। भाजपा सीएम नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए का सहयोगी दल है। नीतीश कैबिनेट में हुसैन की एंट्री कराकर अब पार्टी बड़े पैमाने पर ममता बनर्जी शासित राज्य पश्चिम बंगाल में लाभ उठाना चाह रही है।
बंगाल में इस साल चुनाव होने हैं। बीजेपी सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को सत्ता से बेदखल करने के लिए जी-जान से लगी हुई है। टीएमसी पिछले दस वर्षों से राज्य की सत्ता में है। अब अल्पसंख्यक वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने बिहार में हुसैन को मंत्री बनाकर बंगाल की राजनीति को साधने की कोशिश की है।
शाहनवाज हुसैन ने पहली बार आज यानी 9 फरवरी को पटना के राजभवन में मंत्री के रूप में शपथ ली। इसके साथ ही लंबे समय से नीतीश मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों पर विराम लग गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री हुसैन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा थे। जब वो 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। तब पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया गया था। पांच साल बाद भी वो इस सीट को सुरक्षित रखने में नाकाम रहे क्योंकि गठबंधन सीट बंटवारे के बाद ये नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल-यूनाइटेड (जेडीयू) के पाले में चली गई। आहत हुसैन ने ये भी आरोप लगाया था कि नीतीश को छोड़ कोई भी अन्य उनके टिकट से इनकार नहीं कर सकता था।
उसके बाद से शाहनवाज हुसैन भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे थे। जाहिर तौर से उनके ‘अच्छे दिन’ के लौटने की उम्मीद थी। बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में शपथ लेने के दो सप्ताह से भी कम समय के बाद उन्हें अंततः नीतीश मंत्रालय में शामिल कर लिया गया। केंद्र में उनके राजनीतिक कैरियर को देखें तो शुरू में 52 वर्षीय हुसैन के लिए एक प्रकार की भावना के तहत माना जाता था, लेकिन राज्य में पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें सुनियोजित राजनीतिक अभियान के तहत अपने गृह राज्य बिहार वापस भेजा गया है।
इससे ये स्पष्ट है कि भाजपा बिहार में अल्पसंख्यक वोटों में अपनी पैठ बनाना चाहती है। विशेषकर बंगाल की सीमा से सटे सीमांचल बेल्ट में मुस्लिम वोटरों के बीच, जहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने हाल के राज्य विधानसभा चुनावों में पांच सीटें जीतकर शानदार एंट्री मारी थी। मुस्लिम वोटरों को मत करीब 17 प्रतिशत है, लेकिन किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया के लगभग 20 निर्वाचन क्षेत्रों में, ये काफी मायने रखते हैं। अब तक, एनडीए को मुख्य रूप से नीतीश की अल्पसंख्यक कल्याणकारी नीतियों की वजह से मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। लेकिन, अब हुसैन को बिहार की मुख्य राजनीति में भेजकर बीजेपी स्पष्ट रूप से ये संदेश भेजना चाहती है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्य में अगले मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं।
शाहनवाज हुसैन न केवल एक विशेष समुदाय से आते हैं और युवा नेता है। बल्कि, वो स्वच्छ छवि के नेता भी माने जाते हैं। राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि वो 2025 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में भाजपा के लिए बेहतर विकल्प होंगे।
भाजपा पहले भी शहनवाज हुसैन की तरह अपने युवा नेताओं पर भरोसा जता चुकी है। पार्टी पहले ही सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार जैसे पार्टी के दिग्गजों को दरकिनार कर चुकी है, जो पिछली सभी एनडीए सरकारों में नीतीश मंत्रिमंडल का हिस्सा थे। सिर्फ सुशील मोदी को राज्यसभा भेजा गया है। स्पष्ट है कि पार्टी नीतीश के साथ अपने पूराने समीकरणों को फिर से कायम करना चाहती है, जो पिछले 15 सालों से गठबंधन के भीतर था।
नवंबर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा जदयू से 31 अधिक सीटें जीतकर बड़े भाई की भूमिका में उभरी थी। बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं जबकि नीतीश की पार्टी को केवल 43 सीटें हीं मिल सकीं। हालांकि, विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या अधिक होने के बावजूद भी चुनाव पूर्व किए अपने वादे को ध्यान में रखते हुए राज्य की बागडोर नीतीश को सौंप दी। लेकिन, अब भाजपा अगले चुनावों में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं। यह हुसैन की बिहार में वापसी का सबसे बड़ा रास्ता है, एक ऐसा कदम जो इस समय उनके लिए कम हो सकता है, लेकिन स्पष्ट रूप से इसके जरिए एक अस्पष्ट राजनीतिक संदेश दिया गया है।