इस कदम मे जरिये भारतीय जनता पार्टी जनता दल (यू)- राजद एकता की नैया डुबाने की कोशिश कर रही है। बिहार में मचे राजनीतिक घमासान में पार्टी लाइन से अलग हटकर पप्पू यादव मांझी के समर्थन में आ चुके हैं। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि राज्य में महादलित, दलित, पिछड़े वर्ग का नया नेतृत्व सामने आ सकता है जिसकी कमान फिलहाल जीतनराम मांझी के हाथ में होगी। मांझी किसी भी दल में नहीं हैं इसलिए नए राजनीतिक दल का गठन करना इनके लिए आसान होगा।
संभावना यह जताई जा रही थी कि मांझी भारतीय जनता पार्टी में जा सकते हैं। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा अब जोखिम लेने के मूड में नहीं है। सू़त्रों पर भरोसा करें तो पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाथ मिलाने के बाद पप्पू यादव राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव से नाराज बताए जा रहे हैं। पप्पू यादव कहते हैं, ‘राजद प्रमुख लालू यादव हमेशा से दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यकों के हित की बात करते रहे हैं, अतः उन्हें मांझी का समर्थन करना चाहिए।’ पप्पू यादव के इस बयान के बाद से प्रदेश की सियासत में नए समीकरण की संभावनाए बनने लगी हैं। बीते कुछ समय से राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के विलय की बात चल रही है। इससे राजद के कुछ नेता खुश नहीं बताए जा रहे हैं। वहीं जद यू के भी कई नेता इस समीकरण के पक्ष में नहीं है। अगर दोनों दलों के बीच विलय हुआ तो नाराज नेता नया समीकरण बनाने के लिए मांझी का साथ दे सकते हैं।
राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने जीतनराम मांझी को 20 फरवरी को बहुमत साबित करने का आदेश दिया है। इस आदेश के बाद पटना से लेकर दिल्ली तक चहलकदमी कर चुके मांझी और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेचैनी बढ़ती जा रही है। एक मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते तो दूसरे पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। मांझी समर्थकों का कहना है कि मुख्यमंत्री विश्वास मत हासिल कर लेंगे वहीं नीतीश समर्थक दावा कर रहे हैं कि बहुमत के लिए आवश्यक विधायक जनता दल यूनाइटेड के पास है। इसलिए अगली सरकार नीतीश कुमार की अगुवाई में ही बनेगी। नीतीश कुमार 130 विधायकों का समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंप चुके हैं इन 130 विधायकों की परेड नीतीश कुमार और लालू यादव ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के समक्ष भी कराई। लेकिन राज्यपाल ने मांझी को ही बहुमत साबित करने का मौका दिया। नीतीश कुमार ने मांझाा को 20 फरवरी तक का लंबा समय देने के राज्यपाल के फैसल को राजनीतिक खरीद फरोख्त बढ़ाने वाला बताया। इस बीच पटना उच्च न्यायालय ने नीतीश कुमार को भी झटका दे दिया। उच्च न्यायालय ने जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश को विधायक दल का नेता चुने जाने को अवैध करार दिया।
नीतीश कुमार के समर्थक 130 विधायकों में जनता दल यूनाइटेड के 99, राष्ट्रीय जनता दल के 24, कांग्रेस के 5, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक और एक निर्दलीय विधायक शामिल है। कुल 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में अभी 10 सीटें खाली है। बहुमत साबित करने के लिए कुल 117 विधायकों की जरूरत हैं। मांझी को विश्वास है कि वह बहुमत साबित कर लेंगे। क्योंकि जद यू के कुछ विधायकों के अलावा भाजपा का भी समर्थन मांझी को मिल सकता है। सूत्रों के मुताबिक कई विधायक ऐसे हैं जो नीतीश खेमे में हैं लेकिन विश्वास मत के दौरान मांझी का साथ दे सकते हैं। विश्वास मत के दौरान असहज स्थिति न पैदा हो इसलिए राज्यपाल गुप्त मतदान भी करा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में विधान सभा स्पीकर रहते राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठीपर अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के हित में कार्य करने के आरोप लग चुके हैं। यहां भी जद (यू) और राजद उन पर भाजपा के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि अगर मांझी ने बहुमत साबित कर दिया तो नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा पर विराम लग जाएगा और बिहार में एक नया राजनीतिक समीकरण बन जाएगा। महादलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मांझी बिहार में एक नई ताकत भी बन सकते हैं दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विधायकों, अधिकारियों की बड़ी संख्या मांझी के समर्थन में दिखाई पड़ रही है। पप्पू यादव सहित कई और नेता समर्थन फिलहाल भाजपा से हाथ मिलाकर लालू यादव और नीतीश कुमार को कमजोर कर सकते हैं। दरअसल मांझी को पार्टी से निकाले बिना ही नीतीश कुमार विधायक दल के नेता चुन लिए गए जिससे राजनीतिक संकट बढ़ गया। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन कुछ ही समय बाद मांझी ने बगावती सुर अपना लिया जिसकी वजह से जद (यू) नेताओं की किरकिरी होने लगी। इस बीच भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए जनता परिवार के पुराने साथियों के बीच एकजुटता दिखने लगी। पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव और नीतीश कुमार एक मंच पर आ गए। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनाव में राजद और जद (यू) ने बेहतर प्रदर्शन किया था। उसी के बाद यह समीकरण बनने लगा कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों दल मिलकर लड़ेंगे। इस बीच जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने पुराने समाजवादियों को एकजुट करने की कवायद शुरू की और राजद और जद यू के विलय होने की चर्चा होने लगी। इससे दोनों दलों के नेता नाराज हो गए। इस बीच भाजपा ने मांझी पर डोरे डालने शुरु कर दिए। हालांकि वह तब तक मांझी के शासन को कुशासन बताती रही थी। मांझी ने भाजपा के कई नेताओं से मुलाकात भी की। सूत्रों के मुताबिक भाजपा की कोशिश थी कि मांझी को अपने पाले में करके विधानसभा भंग कर दी जाए और समय से पहले बिहार में चुनाव हो जाए।
लेकिन भाजपा के इस कोशिश को तब झटका लग गया जब जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने आनन-फानन में पार्टी विधायकों की बैठक बुला ली। इस बीच मांझी की हल्की टिप्पणियों ढीले प्रशासन से जद यू को भी आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति डांवाडोल लगने लगी थीं। उधर मांझी ने शरद यादव की बुलाई बैठक को असंवैधानिक करार दिया। मांझी ने कहा कि मुख्यमंत्री होने के नाते विधायकों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल उन्हे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के इस रुख को नजरअंदाज कर जद (यू) ने बैठक बुलाई और नीतीश कुमार को नेता बनाया और मांझी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदयनारायण ने मांझी को असंबद्घ कर दिया यानी वह किसी पार्टी पार्टी के सदस्य नहीं रह गए। मांझी की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब सरकार में शामिल २० मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया।