जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्षी दल के नेता और महागठबंधन के चेहरे तेजस्वी यादव, दोनों के सुर एक हैं। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लंबे इंतजार के बाद समय मिलने पर राज्य के सभी दलों ने उनसे मुलाकात की। लेकिन, इस दौरान जो सबसे खास बात देखने को मिली वो ये की जब प्रधानमंत्री से मिलकर सभी दल बाहर आए तो नीतीश कुमार के साथ-साथ तेजस्वी यादव ने उनके बगल में खड़े होकर एक सुर में मीडिया के सामने बयान दिया। जिसके बाद अब इस बात की चर्चा है कि नीतीश और तेजस्वी के बीच जातीय जनगणना के बहाने बढ़ती ये नजदीकियां राज्य की राजनीति में किस ओर इशारा कर रही है। दरअसल, ये भविष्य की राजनीतिक लकीर भी हो सकता है।
ये भी पढ़ें- जातीय जनगणना पर बदलेगा केंद्र का रुख? पीएम मोदी से मिले नीतीश-तेजस्वी समेत कई नेता
ये भी पढ़ें- अब नीतीश के लिए कुशवाहा बड़ी चुनौती, करेंगे सीएम पद की दावेदारी?, जेडीयू के सत्ता 'संघर्ष' में बढ़ेंगी मुश्किलें!
क्योंकि, जब पीएम से मिलकर नीतीश कुमार सभी प्रतिनिधिमंडल के साथ बाहर आए तो नीतीश से अधिक वक्तव्य तेजस्वी यादव ने दिया। इससे ये संकेत मिल रहे हैं कि दोनों दलों ने जनता के बीच राजद-जेडीयू में दोस्ती का पैगाम देने की कोशिश की है। कैमरे में नीतीश और तेजस्वी काफी देर तक आपस में बातचीत करते हुए भी नजर आए।
जातीय जनगणना मुद्दे पर बातचीत के बाद नीतीश ने कहा, "हम सभी लोगों ने जातीय आधार पर जनगणना की मांग की है। दस पार्टी के कुल ग्यारह लोगों ने मुलाकात की है। सभी दलों का इस मामले पर एक मत है। बिंदुवार जानकारी पीएम के साथ साझा की है।"
इसी दौरान नीतीश ने तेजस्वी को लेकर बड़ी बात कहते हुए कहा, "विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव ने ही पीएम मोदी से बातचीत का प्रस्ताव दिया था, जो मुझे अच्छा लगा और हमनें ये तय किया।" आगे नीतीश ने मीडिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि बाकी बातें जड़ा सभी लोग बोलेंगे। इसके बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा, "ये एतिहासिक, राष्ट्रहित में काम है। जिससे हासिए पर पड़े लोगों को फायदा मिले। जब जानवरों की गिनती होती है तो फिर व्यक्तियों की भी गिनती होनी चाहिए। जब कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है फिर कल्याणकारी योजनाओं को कैसे लागू किया जाएगा।" जानकारों का मानना है कि यदि कोई प्रतिनिधिमंडल पीएम से मिलता है तो उनके अगुवा ही खास तौर से, जो नेतृत्व करते हैं वही पत्रकारों से बातचीत करते हैं। लेकिन, यहां इसके उलट देखने को मिला।
गौर करने वाली बात है कि मीडिया से नीतीश से ज्यादा तेजस्वी ने बातचीत की और जातीय जनगणना पर अपनी बात रखी। इस दौरान मंडल कमिशन का भी उन्होंने जिक्र करते हुए कहा कि इससे पहले देश में कितनी जातियां है, ये आंकड़ा नहीं था। जब एससी-एसटी की गिनती हो सकती है तो फिर सभी जातियों की क्यों नहीं।
दरअसल, फिर से नीतीश के सुर बीजेपी के खिलाफ जा रहे हैं। वहीं, कई और मामले पर नीतीश और भाजपा के अलग-अलग राग हैं। पेगासस मामले पर जांच कराने से केंद्र सरकार नकार रही है। वहीं, एनडीए में प्रमुख दल जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार ने इसके पक्ष में अपनी बात रखते हुए कहा कि ये मामला गंभीर है। इसकी जांच होनी चाहिए। संसद में बहस होना चाहिए। वहीं, सीएए-एनआरसी और जनसंख्या नीति पर नीतीश की राय भाजपा के सुर से बिल्कुल अलग है।
स्पष्ट है कि नीतीश अपने सारे दरवाजे खोलकर रखना चाहते हैं। क्योंकि, भाजपा दो उपमुख्यमंत्रियों और शाहनवाज हुसैन को मंत्री बनाकर राज्य में अपनी पिच तैयार करने की कोशिश में है। लेकिन, ये इतना आसान नहीं है। यदि फिर से तेजस्वी नीतीश साथ आते हैं तो लंबे अरसे तक बिहार में भाजपा का सत्ता में लौटना बस एक सपना बनकर रह जाएगा। 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से नाता तोड़ जेडीयू-राजद ने साथ मिलकर नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और शानदार जीत हासिल की थी। बीजेपी को भारी हार का सामना करना पड़ा था। अब बीजेपी चिराग के बहाने नीतीश को नुकसान पहुंचाकर सत्ता में आने का मन बना रही है, लेकिन ये राह इतनी आसान नहीं है। चिराग की पार्टी लोजपा ने इस विधानसभा चुनाव में महज एक सीटें जीती थी, वो विधायक भी बाद में नीतीश के साथ हो लिए।
राजनीतिक पंडितो का ये भी मानना है कि नरेंद्र मोदी की भाजपा के भीतर जिस तरह की छवि है, उसमें यदि नीतीश कुमार सावधान नहीं रहते हैं फिर जेडीयू और उनका अस्तित्व संकट में आ सकता है। क्योंकि, मोदी सरकार ने सवर्ण और दलित दोनों को बराबर साधने की कोशिश की है। ऐसे में इन दलों को राजनीतिक नुकसान हो सकता है। वहीं, आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भी जेडीयू के भीतर मंथन का दौर जारी है यही वजह है कि ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंपकर राजनीतिक विस्तार देने और संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है। कुशवाहा भी लगातार बिहार भ्रमण पर हैं।