मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के आखिरी चरण के प्रचार के दिन पूर्णिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, “आज चुनाव का आखिरी दिन है। और ये मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला…।” जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की बहस छिड़ गई थी कि जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्य के सीएम नीतीश ने सन्यास की घोषणा कर दी है। लेकिन, 10 नवंबर को चुनाव परिणाम एनडीए के पक्ष में आने के बाद सीएम नीतीश ने अपने बयान को लेकर कहा कि उनके कहने का ये मतलब नहीं था।
बीजेपी-जेडीयू में दूरियां बढ़ने के संकेत
सियासी चश्मे से उनके उस बयान का कुछ मतलब हो या न हो। लेकिन, अब बीजेपी और जेडीयू में सबकुछ ठीक नजर नहीं आ रहा है क्योंकि बीते सप्ताह अरूणाचल प्रदेश जेडीयू इकाई के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। जिसको लेकर पार्टी की तरफ से गहरी प्रतिक्रिया दी गई। पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपीसी सिंह ने इशारों हीं इशारों में बीजेपी को चेतावनी दे डाली। उन्होंने कहा, "हम जिनके साथ रहते हैं, पूरी इमानदारी से रहते हैं। साजिश नहीं रचते और किसी को धोखा नहीं देते हैं। हम सहयोगी के प्रति ईमानदार रहते हैं लेकिन कोई हमारे संस्कारों को कमजोरी न समझे।" उन्होंने यहां तक कहा कि वो ये कोशिश करेंगे कि भविष्य में इस तरह का अवसर नहीं आए। हालांकि, जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने बिहार एनडीए का बचाव करते हुए कहा कि गठबंधन में कोई दिक्कत नहीं है और हम पांच साल सरकार चलाएंगे।
'बीजेपी को सोच कर जेडीयू के बागियों को शामिल करना चाहिए'
आउटलुक से बातचीत में पार्टी के प्रवक्ता अजय आलोक कहते हैं, “जिन्होंने पार्टी छोड़ा है। उनमें से दो विधायक को पार्टी दो महीने पहले हीं बाहर कर चुकी थी। हां, बीजेपी इकाई को ये सोचना चाहिए कि वो किसे शामिल कर रही है। गठबंधन का एक धर्म है जिसे हम निभा रहे हैं। बिहार एनडीए में कोई दरार नहीं है।“
भाजपा अपनी जमीन तैयार करने में जुटी
जिस तरह से बीते गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोद और गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के दोनों उपमुख्यमंत्री, तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के साथ हुई बैठक में सीधे तौर पर कहा कि अब राज्य के विकास में भाजपा की भी भागीदारी दिखनी चाहिए। पीएम मोदी ने तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी से ये भी कहा कि वो राज्य सरकार में पार्टी का चेहरा हैं। यानी भले हीं नीतीश एनडीए का चेहरा हैं लेकिन भाजपा अब अपने चेहरे को मुख्य पटल पर मजबूती से रखने में जुट गई है। इस बार के विधानसभा चुनाव में सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 74 सीटें मिली है और जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें। साफ स्पष्ट है कि भाजपा राज्य में सियासी पिच को खुद के बलबूते सिंचने में लग गई है। बातचीत में अजय आलोक कहते हैं, “राजनीतिक पार्टियां गठबंधन सियासी फायदे के लिए हीं करती है। फायदा नहीं दिखेगा तो पार्टी गठबंधन क्यों करेगी। हर पार्टी चाहती है कि वो अकेले चुनाव लड़े और इसके लिए वो मेहनत करती है। बीजेपी ऐसा कर रही है तो इसमें कोई हर्ज नहीं होने चाहिए। जेडीयू चुनाव परिणाम को लेकर लगातार मंथन कर रही है। जिसमें सभी कमजोर पहलुओं पर विचार किया जाएगा।“
सीएम नीतीश की नैतिकता पर सवाल
अरूणाचल मुद्दे के बाद नीतीश कुमार ने खुद कहा कि उन्हें सीएम बनने की लालसा नहीं थी। इससे अब कयास लगाए जा रहे हैं कि लंबे समय तक राज्य में एनडीए की सरकार नहीं चल सकती है। राजनीतिक पंडित अब इस बात को मान रहे हैं कि अगले चुनाव से पहले बीजेपी और जेडीयू अलग हो सकती है क्योंकि मोदी के नेतृत्व वाली भगवा पार्टी ने अपनी बिसाते बिछानी शुरू कर दी है और इस बात के संकेत पीएम मोदी और शाह की बैठक और अरूणाचल मुद्दे से दिखाई देता है। आउटलुक से वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "यदि इतनी हीं नैतिकता बची थी तो नीतीश कुमार को सीएम नहीं बनना चाहिए था। वो मना कर देते। और कहते कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है तो वो अपना सीएम बनाए।"
बीजेपी और जेडीयू में दरार के मिल रहे संकेत को विपक्ष भी भूनाने में जुट गई है। कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने भी नीतीश को निमंत्रण दिया है। उन्होंने कहा, “वो पहले भी हमारे साथ थे। यदि वो आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है।“
राज्य में भाजपा के लिए अभी भी मुश्किलें
आउटलुक से बातचीत में बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि राजनीतिक गठबंधन अब सिर्फ सियासी फायदे के लिए होता है। सुशील मोदी को भाजपा बिहार की राजनीतिक में खुद के लिए एक ‘कांटे’ के तौर पर देख रही थी। क्योंकि, मोदी पार्टी को राज्य के मुख्य पृष्ठभूमि में इंगित करने में नाकामयाब रहें। जिस वजह से भाजपा को नीतीश-मोदी की जोड़ी तोड़नी पड़ी। वो कहते हैं, “अब ये स्पष्ट है कि भाजपा अपनी जमीन खोजने में जुट गई है। लेकिन, जिन्हें बतौर डिप्टी सीएम बनाया गया है वो बिहार की राजनीति में कुछ खास मायने नहीं रखते। पार्टी की यही कमजोरी रही है कि डेढ़ दशक के बाद भी वो एक अपना चेहरा नहीं बना पाई।“
वहीं, पीएम मोदी और डिप्टी सीएम की बैठक को लेकर अजय आलोक कहते हैं, “केंद्र में बीजेपी की सरकार है यदि राज्य में इसका क्रेडिट बीजेपी लेती है तो क्या दिक्कत। लेकिन, ये तय है कि जेडीयू नीतीश के नेतृत्व के बिना चुनाव में उतरने का सोच भी नहीं सकती। अगला चुनाव भी सीएम नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और वहीं पार्टी का चेहरा होंगे।“
अलग हो सकती जेडीयू
यदि जेडीयू की ये रणनीति बरकरार रहती है तो इससे सीधे तौर पर स्पष्ट होता है कि यदि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी पार्टी से सीएम कैंडिटेड का ऐलान करती है तो एनडीए से जेडीयू अलग हो सकती है। वैसे भी जिस तरह से हाल हीं संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गई। जिसके बाद बड़े भाई की भूमिका से नीतीश सीएम बनने के बावजूद भी बेदखल नजर आ रहे हैं और भाजपा ने दो उपमुख्यमंत्री अपने कोटे से बनाएं है। इससे ये जाहिर होता है कि भाजपा अगले चुनाव से पहले अपनी सियासी जमीन को पूरे तौर पर तैयार कर लेना चाहती है।
विपक्ष एनडीए के टूटने की ताक में बैठी है। सोमवार को मनोज झा ने नीतीश कुमार को लेकर कहा कि 40-45 सीटें जीतने के बाद भी वो इतने बेबस है। कुछ दिनों पहले उन्होंने इस बात की भविष्यवाणी न्यूज चैनल से बातचीत में की थी कि अगले छह महीने में ये सरकार गिर जाएगी। अब देखना होगा कि राजद की भविष्यवाणी कितनी सटीक होती है। लेकिन, एक बात स्पष्ट है कि यदि ये दूरियां बढ़ती गई तो विपक्ष को फायदा हो सकता है।