केंद्र सरकार को उत्तराखंड के बाद यह दूसरा झटका लगा है जब राज्य की हटाई गई सरकार को देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद बहाल किया गया है।
अदालत ने आज कहा कि अरुणाचल प्रदेश विधानसभा का सत्र एक माह पहले बुलाने का राज्यपाल का फैसला संविधान का उल्लंघन है और यह रद्द करने लायक है। अदालत ने यह भी कहा कि विधानसभा की कार्यवाही के संचालन से जुड़ा राज्यपाल का निर्देश संविधान का उल्लंघन है। कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की कार्यवाही को भी गलत करार दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल के नौ दिसंबर, 2015 के आदेश की अनुपालना में विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम और फैसले दरकिनार करने लायक हैं। न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश में 15 दिसंबर 2015 से पहले वाली स्थिति कायम रखने के निर्देश दिए। सभी पांच न्यायाधीशों ने राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के फैसले को रद्द करने का निर्णय एकमत से लिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए राज्य की सत्ता से हटाए गए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम टुकी ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिला है। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला है और भाजपा को पता होना चाहिए कि चुनी हुई सरकार को असंवैधानिक तरीके से गिराने की कोशिश ठीक नहीं है। टुकी ने यह भी कहा कि वे फिर से सत्ता संभालेंगे और विधायकों से बात करेंगे।
अदालत में नबाम टुकी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने इसे लोकतंत्र की विजय करार दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय न्यायपालिका वास्तविक अर्थों में संविधान की रक्षक है। उन्होंने कहा कि यह फैसला केंद्र सरकार की मनमर्जी पर तमाचा है।
पिछले वर्ष दिसंबर में राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति तब बन गई थी जब अरुणाचल में कांग्रेस के 47 में से 21 विधायकों ने विधानसभा उपाध्यक्ष का समर्थन किया था। बीजेपी के 11 और दो निर्दलीय विधायक भी उपाध्यक्ष के समर्थन में आ गए थे जिससे टुकी सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसके बाद केंद्र ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था।