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रामदास अठावले भाजपा के गुलाम – मायावती

बसपा प्रमुख मायावती ने केंद्रीय मंत्री और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रामदास अठावले पर प्रहार करते हुए ‌कहा कि भाजपा की गुलामी और अपने स्वार्थ के चलते बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर की भावना को आहत कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि अठावले को भाजपा के बहकावे में आकर बौद्ध धर्म अपनाने के सम्बन्ध कोई बात नहीं कहनी चाहिए।
रामदास अठावले भाजपा के गुलाम – मायावती

रामदास अठावले के इस बयान पर कि अगर मायावती सच्ची अंबेडकरवादी हैं तो वे अब तक क्यों हिन्दू हैं व बौद्ध धर्म क्यों नहीं अपनाती। इस बयान  पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये मायावती ने कहा कि वास्तव में बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर व उनके मानवतावादी मूवमेन्ट के सम्बन्ध में अज्ञानता का ही यह परिणाम है जो उन्होंने लोगों को वरगलाने की ख़ास नीयत से यह बात कही है।

मायावती ने कहा कि देश के अन्य प्रदेशों की तरह ही उत्तर प्रदेश में भी भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दलितों के वोटों को बांटकर उन्हें दूसरी पार्टियों का गुलाम बनाकर रखने की मानसिकता के तहत ही मन्त्रिमण्डल में विस्तार करके जो कुछ गुलाम मानसिकता वाले लोगों को मंत्री बनाया गया है। उन्होने कहा कि अठावले को गलत,मिथ्या व भ्रमित करने वाले बयानों के लिये ही इस्तेमाल करते रहने की नीयत से ही मंत्री बनाया गया है। उन्होने कहा कि अठावले को इस बात का गहन अध्ययन करना चाहिये कि बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने काफी वर्षों पहले तहैया करने के बावजूद अपने देहान्त के ठीक पहले ही बौद्ध धर्म को अपनाने का अपना संकल्प क्यों पूरा किया था।

मायावती ने कहा कि भाजपा को भी उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा आमचुनाव में अपनी बाज़ी हारती हुई साफ नज़र आ रही है। इस कारण अब वह धर्म की आड़ में भी राजनीति करने का प्रयास कर रही है, जिसके तहत् ही पर्दे के पीछे से ‘‘बौद्ध धर्म यात्रा‘‘ भी शुरू की गयी है। परन्तु उत्तर प्रदेश में धर्म की आड़ में की जा रही उस राजनीति के जबर्दस्त विरोध को देखते हुये अब भाजपा ने गुलामी की मानसिकता रखने वाले कुछ दलित व पिछड़े वर्ग के नेताओं को आगे करके अपनी स्वार्थ की राजनीति शुरू कर दी है। मायावती ने कहा कि वर्षों तक गुलामी व शोषण-अत्याचार एवं हीनता का जीवन जीने वाले ख़ासकर दलित व अन्य पिछड़े वर्ग के लोग अब राजनीतिक सत्ता की मास्टर चाबी के महत्व के बारे में काफी जागरुक होकर सत्ता प्राप्त करने के लिये लगातार संघर्षरत हैं ताकि आत्म-सम्मान व बराबरी का जीवन जीते हुये अपना उद्धार वे स्वयं कर सके, जो कि बौद्ध धर्म का भी अन्तिम लक्ष्य है। 

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