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भारतीय न्याय संहिता: यहां दर्ज हुई पहली प्राथमिकी, इस थाने का नाम इतिहास में दर्ज!

भारतीय दंड संहिता की जगह सोमवार से लागू हुई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत उत्तर प्रदेश की पहली...
भारतीय न्याय संहिता: यहां दर्ज हुई पहली प्राथमिकी, इस थाने का नाम इतिहास में दर्ज!

भारतीय दंड संहिता की जगह सोमवार से लागू हुई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत उत्तर प्रदेश की पहली प्राथमिकी अमरोहा जिले के रेहरा थाने में दर्ज की गई। उत्तर प्रदेश पुलिस ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘इतिहास रचा जा रहा है। अमरोहा जिले का रेहरा थाना उत्तर प्रदेश में नए भारतीय न्याय संहिता के तहत प्राथमिकी दर्ज करने वाला राज्य का पहला पुलिस थाना बन गया है।’’

बीएनएस के तहत राजवीर उर्फ राजू और भूप सिंह उर्फ भोलू के खिलाफ धारा 106 (लापरवाही से मौत) के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई है। प्रदेश पुलिस के मुताबिक अमरोहा के रेहरा थाना क्षेत्र स्थित ढकिया गांव निवासी संजय सिंह ने दर्ज कराये गये मुकदमे में आरोप लगाया कि आरोपियों ने उनके खेत में बिजली का तार बिछा दिया था।

इसमें कहा गया कि उनके पिता जगपाल जब सुबह करीब साढ़े छह बजे अपने खेत गये तो उन्हें करंट लग गया, जिससे उनकी मौत हो गयी। मामले की विस्तृत जांच की जा रही है।

गौरतलब है कि एक जुलाई से देश में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नये कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनिमय लागू हो रहे हैं। 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी थी।

भारत में भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड, संक्षेप में आईपीसी) मुख्य आपराधिक कानून है। इसके अलावा इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन ईवीडेंस एक्ट) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, संक्षेप में सीआरपीसी) भी शामिल होकर मुकम्मल आपराधिक कानून बनाते हैं।

साक्ष्य अधिनियम में किसी भी मुकदमे में सबूत की श्रेणी में कौन-कौन से तथ्य आते हैं, कौन गवाह बन सकता है, गवाही कैसे ली जाए इन सब चीजों का वर्णन है। सीआरपीसी में कोई आपराधिक मुकदमा कैसे चले, पक्षकारों को समन कैसे दिया जाए, जमानत की अर्जी किस प्रकार दी जाए, अग्रिम जमानत किन मामलों में मिले, न्यायाधीश आपराधिक मुकदमों की सुनवाई कैसे करें, उनके विवेकाधिकार क्या, क्या हैं, इन सब बातों का वर्णन किया गया है।

एक जुलाई से लागू हो रहे आपराधिक प्रक्रिया तय करने वाले तीन नये कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एफआइआर से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है। आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए नए कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर एफआइआर दर्ज करने, जांच पूरी करने, अदालत के संज्ञान लेने, दस्तावेज दाखिल करने और ट्रायल पूरा होने के बाद फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय है।

 

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