`जो हम लोगों के लिए किया है, उसी को न बोट दिलाएगा। अगर हम लोग भूल जाएंगे तो फिर आगे कौन हमरे खातिर करेगा। अब आप लोग बुझिए, कौन आएगा।'
ये कहकर महलाओं के झुंड में धनवती देवी चुप हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि वह अभी इससे ज्यादा पत्ते खोलने को तैयार नहीं होतीं। लेकिन साथ खड़ी प्रतिमा कुमारी, जो बीए फर्स्ट इयर कर रही है, कहती है नीतीश जी ने हम लोगों के लिए बहुत किया है, उन्हीं को वापस आना चाहिए। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या आप उन्हें वोट देंगी, तो खट्ट से वह बोलीं, धत्त हमारा बोट नहीं है? क्यों? उनकी मां धनवती ने बताया कि हमारे यहां बेटियां बोट नहीं डालने जाती हैं। जब इनका ब्याह हो जाएगा,तो ससुराल में डालेंगी। प्रतिमा ने बताया, यहां सब लड़की को सब बोट नहीं देने देता है, कहते हैं लड़की सब बोट दे कर क्या करेगी
फिर एक स्वर आता है कि नीतीश जी, छोटी जात पर ज्यादा ताक रहे है, बड़का जात सब को देखबे नहीं न है। थोड़ी दिक्कत होता है, इस सब से, पर विचार तो हम सबका नीतीश को बोट देने का है। सब बड़का जात धनिको नहीं न बा। ओकरे खातिर भी तो सोचे के रहिल ना। अब कहत ताड़न। पर नीतीश बाबू के वादा पक्का रहेला, मोदी नियन ना। दूसर बात बा, घर-घर साइकिल, स्कूल ड्रेस त पहुंचल बा ना। सबको मिल रहा है। फायदा तो हुआ है, लालच में सही बच्चा पढ़ने जा रहे हैं।
इसके बाद नाराजगी की स्वर फूटा, रेनू देवी का। उन्होंने कहा, कहां कुछ फायदा हुआ है, कुच्छों नही। राशन कार्ड में नाम तक तो चढ़ नहीं रहा है। मिट्टी का तेल, चीनी कुछ भी नहीं मिल रहा है। इस पर राजकुमारी ने कहा कि राशन की दुकान पर सामान देखने नीतीश तो नहीं आएंगे। जो बदला है, उसे मानना पड़ेगा, वरना गुजराती का कब्जा हो जाएगा।
ये सारी महिलाएं छपरा इलाके के डोरीगंज गांव की निवासी हैं, जो सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में आता है। इस समूह में राजपूत और यादव समुदाय की महिलाएं थीं और सबका नीतीश के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर दिखाई दे रहा था। वे मान रही हैं कि नीतीश का दिमाग बहुत तेज है। साथ ही उनको यह भी विश्वास है कि बिहार का आदमी ही बिहार के बारे में अच्छा सोच सकता है।
यहां से लालू प्रसाद यादव के राजद के मुन्नवर चौधरी और भाजपा के ज्ञानचंद मांझी के बीच टक्कर है। एक दिलचस्प बात देखने को मिली की जमीन पर लालू और नीतीश के वोट बैंक का समन्वय हो गया है। पटना से छपरा तक की इस पट्टी में लालू की पार्टी को ही सीटें मिली हैं, लेकिन मतदाता बोलते यही हैं कि नीतीश को ही वोट देंगे।
छपरा शहर पार करने के बाद रिवीलगंज में कुछ दलित महिलाओं से मुलाकात हुई। यहां लड़ाई राजग के रणधीर कुमार, जो प्रभुनाथ सिंह के बेटे हैं और भाजपा के सीएन.गुप्ता और भाजपा के विद्रोही उम्मीदवार कन्हैया सिंह के बीच है। वाल्मिकी समुदाय की गीता देवी ने शुरू में थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा कि अभी उन्होंने सोचा नहीं है कि वोट किसको देंगी। थोड़ा बतियाने के बाद खुल गईं। उनके साथ लक्ष्मी देवी, राधिका देवी, शारदा देवी, मीना देवी और बबीता देवी ने भी खुलकर बातचीत में हिस्सा लिया। इन महिलाओं का रुझान स्पष्ट रूप से नीतीश कुमार की तरफ दिखाई दिया। उनके तर्क ज्यादा राजनीतिक थे। वे सीधे-सीधे पूछ रही थी कि हम कमल को क्यों वोट दें, कमल तो हमारा आरक्षण खाने की योजना बना रहे हैं। नीतीश सुनते तो हैं, मोदी तो भाषण झाड़ते रहते हैं। अच्छे दिन में दाल 200 रुपये किलो हो गई, और क्या देखना बाकी है। कम से कम हमारे बच्चों को साइकिल-कपड़ा, छात्रवृत्ति तो मिली। हम लोग डिसाइड की हैं कि लालटेन पर बटन दबाएंगे।
महागठबंधन का बंधन नीचे तक पहुंचा है। लालू के उम्मीदवार जहां से खड़े हैं, वहां से भी लोग नीतीश को ही वोट देने की बात कह रहे हैं। यानी ये सारे संकेत साइकिल, स्कूल ड्रेस, महिला थानों के जरिए नीतीश ने व्यापक महिला समुदाय में अपनी पैठ बनाई है। वोट में यह किस कदर तब्दील हो रही है, यह तो बटन दबाते समय ही पता चलेगा।