पूर्वोतर में कांग्रेस का किला ढह गया है तथा जोरमथंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने राज्य के चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की है। एमएनएफ को नतीजों में स्पष्ट बहुमत मिल गया है और दस साल बाद फिर से सत्ता में वापसी कर रही है।
एमएनएफ नेता जोरमथंगा ने आइजोल ईस्ट-1 से चुनाव जीता है। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के सपंदगा को हराया है। मिजोरम के पूर्व मुख्यमंत्री और एमएनएफ नेता जोरामथांगा का जन्म 13 जुलाई 1944 में हुआ था। दिसंबर 1998 से दिसंबर 2008 तक वह मुख्यमंत्री थे। जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने फिर से जोरदार वापसी की है।
मिजो नेशनल फ्रंट एक प्रतिबंधित संगठन था और गुप्त रूप से अलग देश की मांग के लिए सक्रिय था। 1966 में स्नातक करने के बाद जोरमथंगा ने एमएनएफ को ज्वाइन कर लिया। तीन वर्ष तक उन्होंने इलाके के सचिव की जिम्मेदारी संभाली। 1969 में मिजो नेशनल फ्रंट के सभी कैडर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए। बाद में मिजो नेशनल फ्रंट के तत्कालीन अध्यक्ष लालडेंगा ने जोरमथंगा को अपना सचिव बना लिया। जिस पद पर वो सात सालों तक रहे। 1979 में वह मिजो नेशनल फ्रंट के उपाध्यक्ष बने।
पहली बार चंफाई से बने थे विधायक
विद्रोह के दौरान सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 25 वर्षों के संघर्ष के बाद 30 जून 1986 को मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया गया और फिर 1987 में उसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। समझौते के बाद जोरमथंगा राजनीति में आ गए और पहली ही बार में चंफाई से विधायक बने।
2003 में किया था गठबंधन
लालडेंगा मुख्यमंत्री थे उस समय जोरामथंगा को वित्त और शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1990 में लालडेंगा की मृत्यु के बाद जोरमथंगा मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष बने। 1998 में विधानसभा चुनाव से पहले जोरमथंगा ने मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस से गठजोड़ किया जिस पर उन्होंने 33 सीटें जीत ली और पहली बार मुख्यमंत्री बने। 2003 में उन्होंने बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने का फैसला किया। वह फिर एक बार मुख्यमंत्री बने। 2008 के मिजोरम विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने तीन सीटें हासिल की और सत्ता से बाहर हो गई। अब दस साल बाद फिर से उनकी पार्टी ने सत्ता में वापसी की है।