जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में आइसा, एसएफआई और डीएसएफ के वाम गठबंधन ने सेंट्रल पैनल की चारों सीटें जीत ली। वाममोर्चा की उम्मीदवार आइसा की गीता कुमारी ने एबीवीपी की निधि त्रिपाठी को 464 वोटों से हराकर छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की। गीता को 4639 में से 1506 और निधि त्रिपाठी को 1042 वोट मिले। वाममोर्चा की ओर से आइसा की सिमोन जोया खान ने उपाध्यक्ष, एसएफआई के दुग्गिराला श्रीकृष्णा ने महासचिव और डीएसएफ के सुभांशु सिंह ने संयुक्त सचिव पद पर शानदार जीत दर्ज की। पिछले साल भी आइसा-एसएफआई का लेफ्ट पैनल चारों सीटों पर विजयी रहा था।
चारों सीटों पर लेेेेफ्ट की बड़ी जीत
सेंट्रल पैनल की चारों सीटों पर वाम गठबंंधन ने एबीवीपी को काफी अंतर से हराया जबकि दूसरे और तीसरे स्थान के लिए एबीवीपी और बापसा में कांटे की टक्कर थी।
जेएनयू छात्र संघ की नई अध्यक्ष गीता कुमारी हरियाणा की रहने वाली हैं और जेएनयू में इतिहास से एमफिल कर रही हैं। अब जेएनयू में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर लड़कियां हैं।
अपनी जीत पर प्रतिक्रिया देते हुए गीता कुमारी ने कहा कि इसका श्रेय जेएनयू के उन छात्रों को जाता है जो मानते हैं कि जेएनयू जैसी लोकतांत्रिक जगह को बचाए रखने की जरूरत है। गीता ने जेएनयू की सीटों में कटौती, नजीब की गुमशुदगी, नए हॉस्टल और प्रवेश प्रक्रिया से जुड़े मुद्दों को उठाने का वादा किया है।
महासचिव पद पर करीब 1100 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल करने वाले एसएफआई के दुग्गिराला श्रीकृष्णा का कहना है कि इन चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि जेएनयू अब और ज्यादा डेमोक्रेटिक हो गया है। हम वादा करते हैं कि लगातार छात्रों के संपर्क में रहेंगे और एबीवीपी की साम्प्रदायिक नीतियों का मुकाबला करेंगे। उधर, एबीवीपी का दावा है कि जेएनयू में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और उसे हराने के लिए वामपंथी संगठनों को एकजुट होना पड़ा।
बापसा का उभार
बिरसा-अंबेडकर-फूले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बापसा) ने जेएनयू में लगातार दूसरे साल अच्छे खासे वोट बटोरे और लेफ्ट-राइट दोनों खेमाेें के छात्र संगठनों को कड़ी टक्कर दी। एक समय बापसा के उम्मीदवार एबीवीपी से भी आगे चल रहे थे। अध्यक्ष पद के लिए बापसा की शबाना अली ने 935 वोट हासिल कर एबीवीपी की निधि त्रिपाठी को तगड़ी चुनौती दी। प्रेसिडेंशियल डिबेट में सबका ध्यान खींचने वाले निर्दलीय फारुक आलम 419 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे।
सेंट्रल पैनल की चारों सीटों पर बापसा के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे हैं। इन सभी उम्मीदवारों को 850 से ज्यादा वोट मिले। आखिर तक एबीवीपी के साथ इनका कांटे का मुकाबला रहा। बापसा को मिल रहे समर्थन से जाहिर है कि जेएनयू में छात्रों के एक बड़े वर्ग खासकर दलित-बहुजन-आदिवासी छात्रों का वामपंथी और दक्षिणपंथी संगठनों से मोहभंग हुआ है।
एबीवीपी को ब्राह्मणवादी और वाम को सवर्ण मानसिकता से ग्रसित बताने वाले बापसा का उभार लेफ्ट और राइट दोनों के लिए खतरे की घंटी है। खासकर रोहित वेमुला मामले के बाद दलित-ओबीसी छात्र लामबंद हुए हैं और जेएनयू के समावेशी होने पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
सेंट्रल पैनल के विजयी लेफ्ट के चारों उम्मीदवार
एआईएसएफ और एनएसयूआई का फीका प्रदर्शन
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन का प्रदर्शन बेहद फीका रहा। अध्यक्ष पद पर एआईएसएफ की अपराजिता राजा को सिर्फ 416 वोट मिले। वे सीपीआई नेता डी. राजा की बेटी हैं। कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की उम्मीदवार वृष्णिका सिंह केवल 82 वोट हासिल कर पाईं। अध्यक्ष पद के लिए 127 छात्रों ने नोटा का इस्तेमाल किया। चारों सीटों पर एनएसयूआई के उम्मीदवार नोटा से भी पीछे रहे।
पहले मतदान कम, फिर खूब चला नोटा
जेएनयू में बड़ी तादाद में छात्रों ने नोटा का इस्तेमाल किया। इस बार मतदान भी सिर्फ 59 फीसदी के करीब हुआ था। कुल पड़े 4639 वोटों में से संयुक्त सचिव पद पर 501 छात्रों ने नोटा का इस्तेमाल किया। सेंट्रल पैनल की बाकी सीटों पर भी नोटा की तादाद अच्छी खासी रही है। खासतौर पर विज्ञान संकाय के छात्रों ने नोटा को चुना। चारों सीटों पर नोटा पर कुल 1512 वोट गए।
शनिवार देर रात हुए चुनाव परिणामों के बाद जेएनयू कैंपस में विजयी उम्मीदवारों ने धूमधाम से अपनी जीत का जश्न मनाया। जेएनयू छात्रसंघ का यह चुनाव अपनी डिबेट और आदर्श चुनाव प्रक्रिया के लिए जाना जाता है।
तीखी हुई विचारधारा की लड़ाई
पिछले साल कैंपस में देश-विरोधी नारेबाजी के आरोपाेें और छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद से जेएनयू हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर रहा है। पहले भी पूरे देश की नजर जेएनयू की चुनाव पर रहती थी, लेकिन अब यह चुनाव आरएसएस समर्थित एबीवीपी और वामपंथी छात्र संगठनों के बीच प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। देश में भले ही भगवा लहर चल रही है, लेकिन इन नतीजों ने साबित कर दिया है कि जेएनयू अब भी लेफ्ट का गढ़ है।
हालांकि, कैंपस में एबीवीपी की बढ़ती ताकत ने एसएफआई, आईसा और डीएसफ जैसे छात्र संगठनों को एकजुट करने पर मजबूर कर दिया। विज्ञान और विशेष संकायों में एबीवीपी का दबदबा बना हुआ है। लेकिन भाषा, मानविकी और सामाजिक विज्ञान के छात्रों का रुझान वामपंथ की तरफ कायम है।
फेक न्यूज के चक्कर में कैलाश विजयवर्गीय
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव का परिणाम आने से पहले ही कई लोगों ने एबीवीपी की जीत की खबर चलानी शुरू कर दी। इन अफवाहों पर यकीन कर भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी एबीवीपी को बधाई दे डाली। उन्होंने ट्वीट किया कि जेएऩयू में भारत के टुकड़े करने वालों की हार हुई औऱ भारत माता की जय बोलने वाली जीत। उनके इस ट्वीट के बाद बहुत-से लोग एबीवीपी की जीत का दावा करने लगे। हालांकि, बाद में विजयवर्गीय ने विवादित ट्वीट डिलीट कर दिया। लेकिन फर्जी खबर शेयर करने से उनकी काफी किरकिरी हुई।
सीपीआई (एमएल) पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन ने एबीवीपी पर जेएनयू के बारे में फेक न्यूज प्रचारित फैलाने का आरोप लगाया, ताकि दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के मतदाताओं को भ्रमित किया जा सके। डीयू में 12 सितंबर को छात्रसंघ चुनाव होने हैं, जहां मुख्य मुकाबला एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच है।
ABVP spreading fake news claiming JNU victory, to try & fool DUSU voters. Poor @KailashOnline also fell victim to the fake news pic.twitter.com/g9dY12M6Pv
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) September 9, 2017