दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की ऐतिहासिक जीत के गहरे मायने हैं, जिनकी गूंज राष्ट्रीय राजनीति में दूर और देर तक सुनाई देगी। नई सरकार के सामने चुनौतियां और अपेक्षाएं भी जबर्दस्त हैं। केंद्र सरकार से उसके टकराहट की जमीन भी गरम है और ऐसा कयास है कि दिल्ली सरकार को इंच-इंच आगे बढ़ने के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर होना होगा। इसके साथ ही देश भर में भाजपा के विरोध में एक राजनीतिक केंद्र के रूप में उभरी आप के लिए दिल्ली में सुशासन देना पहली प्राथमिकता है।
ठेठ दिल्ली के मुद्दों पर लड़े गए दिल्ली विधानसभा के चुनावों में 54.3 फीसदी मतदाताओं ने एकजुट होकर एक वैकल्पिक राजनीति का दावा पेश करने वाली पार्टी पर बटन दबाया और ६७ सीटें आप के खाते में डालीं। इन चुनावों में आप की सीधी टक्कर भारतीय जनता पार्टी से थी, जिसके हाई-प्रोफाइल प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनका मंत्रिमंडल, राज्यों के मुख्यमंत्री सहित राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की टीम उतरी और भाजपा के खाते में 3 सीटें आईं और वोट मिले 32.1 फीसदी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा को 46.4 फीसदी वोट मिले थे, यानी जो वोट मोदी के नाम पर उस समय मिले थे, वे इस बार उससे दूर छिटक गए। सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी से संबद्ध वरिष्ठ स्तंभकार अभय कुमार दुबे का कहना है कि आप ने भाजपा की बढ़त को न सिर्फ कम किया है बल्कि थामा है। तमाम विश्लेषण यह साबित कर चुके हैं कि दिल्ली के तमाम तबकों ने आप का हाथ थामा और सबके जुड़ाव की वजहें अलग-अलग रहीं। आप के थिंक टैंक और दिल्ली चुनावों में भाजपा के आक्रामक-अश्लील प्रचार का शालीनता के साथ जवाब देने वाले आशीष खेतान का कहना है कि आप के फैक्टर ने एक चुबंक की तरह काम किया, समाज के तमाम हिस्से इससे अपने आप जुड़ते गए। हालांकि आप के दिल्ली के प्रभारी आशुतोष ने आउटलुक को बताया कि पिछले आठ-नौ महीनों से आप ने जो जमीनी काम किया, उसने ही रंग दिखाया।
आम आदमी की भावनाओं को प्रतिबिंबित करने वाली इस पार्टी को इस बात का भी श्रेय जाता है कि पहली बार किसी भी विधायक के ऊपर हत्या, हत्या की कोशिश, महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे जघन्य अपराधों के मामले नहीं दर्ज हैं। तमाम अन्य विधानसभाओं की तुलना में दिल्ली में सबसे कम करोड़पति विधायक हैं। वर्ष 2013 की विधानसभा (जिसमें भी आप के विधायकों की संख्या खासी थी) विधायकों की औसत संपत्ति 10.83 करोड़ रुपये से गिरकर 6.29 करोड़ रुपये हो गई है। आप के हर तीन में से दो विधायकों की संपत्ति एक करोड़ रुपये से अधिक है। इतनी कम संपत्ति वाले विधायकों की इतनी बड़ी संख्या दिल्ली विधानसभा में पहली बार पहुंची है और औसत उम्र भी बेहद कम है, 43 साल।
आप की इस अप्रत्याशित जीत ने एक बार फिर दिल्ली के उन बुनियादी मुद्दों को राजनीति के केंद्र में ला दिया है, जिन्हें विकास की तथाकथित राजनीति में पुराने जमाने की चीज बताई गई थी। जैसे गरीबों को अधिक सुविधाएं देना, सब्सिडी मुहैया कराना, मुफ्त वाई-फाई देना, सरकारी स्कूल-कॉलेज की गारंटी करना आदि। आप की बंपर जीत ने भाजपा को गहरे आत्मचिंतन की ओर बाध्य किया ही है। जिस तरह से भाजपा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पूर्व पुलिस अधिकारी किरन बेदी को उतारा, उस पर कई दौर की चर्चा भाजपा के भीतर हो चुकी हैं। सवाल इससे बड़ा यह है कि आगे दिल्ली सरकार में कैसे तमाम समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व किया जाएगा। अभी ही महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। इस जीत को मुमकिन बनाने में आम आदमी पार्टी की जिस टीम ने काम किया वह बेहद खास और प्रतिबद्ध है। इनमें 30 वर्षीय राजीव चड्ढा, जो चार्टेड एकाउंटेंट है और जिन्होंने तमाम हमलों के बीच आप के लिए रिकॉर्ड चंदा जुटाने की सफल रणनीति बनाई, 48 वर्षीय पंकज गुप्ता, जिन्होंने धन जुटाने पर जोर दिया, 44 वर्षीय संजय सिंह जिन्होंने मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह तमाम आरोपों को सुलझे ढंग से निपटाया, 30 साल के अंकित लाल जिन्होंने सोशल मीडिया पर आप की बैटिंग को कारगर किया, 38 वर्षीय आशीष खेतान जिन्होंने दिल्ली डायलॉग शुरू करके सीधे जनता से तार जोड़े और 45 वर्षीय आशीष तलवार जिनकी उंगलियों पर दिल्ली की गलियां है और जिन्होंने गली-गली तक आप को पहुंचाने की अहम भूमिका निभाई। उसी तरह से 44 वर्षीय आशुतोष ने सही समय पर सही दखल को सुनिश्चित किया, 33 वर्षीय आतिशि मारलीना ने बहुत सधे अंदाज में टीवी पर प्रचार संभाली और 51 वर्षीय योगेंद्र यादव ने जमीन पर जनता की नब्ज को पकड़, सही आकलन किया। ऐसे अनगिनत लोगों की खास टीम के बलबूते ही दिल्ली के लोगों के लिए समर्थ विकल्प के तौर पर आप खड़ी हो पाई।
अब आप की सरकार 400 इकाई तक बिजली खर्च करने वालों का बिजली बिल आधा करेगी, डिस्कॉंम को सस्ती बिजली खरीदने की राह खोलेगी तथा उपभोक्ताओं को बिजली कंपनियों में चुनाव करने की स्वतंत्रता देगी। यह सब करने में कई रोड़े हैं, जिन्हें तुरंत हल करना एक बड़ी चुनौती होगी। इसी तरह से 20 हजार लीटर मुफ्त पानी प्रत्येक घर को देना, मीटर लगाना, यमुना नदी को पुनर्जीवित करना, पानी माफिया पर नकेल कसने की घोषणा को अमली जामा पहनाने में अधिकारी माथा-पच्ची कर तो रहे हैं, लेकिन इस पर जो लागत आएगी, उसकी भरपाई एक बड़ी चुनौती है।
केंद्र सरकार से टकराहट को कैसे और किस हद पर संभालेगी नई सरकार, यह दिल्ली वासियों के लिए गहरी रुचि का विषय है। अरविंद केजरीवाल अपनी तरफ से एजेंडा तय कर रहे हैं और केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर रहे हैं लेकिन वह भी जानते हैं कि डगर कठिन है पनघट की।