भारतीय जनता पार्टी और उसका पितृ संगठन आरएसएस हमेशा जम्मू कश्मीर में धारा 370 का विरोध करता रहा है। जबकि पीडीपी इस धारा की कट्टर समर्थक रही है। भाजपा राज्य में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (आफ्सपा) लगाये जाने के पक्ष में है लेकिन पीडीपी इसे जन विरोधी कानून मानती है और इसका विरोध करती है।
भाजपा की छवि एक कट्टर हिंदूवादी पार्टी की है और चुनावों में उसके पक्ष में जम्मू के आसपास से हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हुआ है। पीडीपी का मुख्य आधार कश्मीर के मुस्लिम मतदाता हैं। न पीडीपी का कोई विधायक जम्मू इलाक़े से है और न ही भाजपा का कोई विधायक कश्मीर से हैं। जम्मू-कश्मीर में यह गठबंधन अभूतपूर्व है।
चुनाव नतीजों में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 28 विधायकों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो भाजपा के हिस्से में 25 सीटें आईं। नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के खाते में सिर्फ 15 और 12 सीटें हैं। इसे जैसे-तैसे सरकार बनाने की मजबूरी ही कहेंगे कि भाजपा और पीडीपी जैसी परस्पर विरोधी पार्टियां मतभेद भुलाकर सरकार बनाने पर उतारू हैं।
शपथ ग्रहण समारोह रविवार को जम्मू में होगा जहां राज्यपाल एनएन वोहरा सईद को शपथ दिलाएंगे। सईद नौ साल से भी ज्यादा समय बाद फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इससे पहले सईद कांग्रेस के साथ गठबंधन में नवंबर 2002 से नवंबर 2005 तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सईद 1989 में भाजपा का बाहरी समर्थन लेने वाली वीपी सिंह सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री भी रह चुके हैं। सईद के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिस्सा लेंगे।
विपक्ष इस गठबंधन को अवसरवादी बोल रहा है तो बीजेपी-पीडीपी के पास इसे सही ठहराने के कई बहाने हैं।