कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने शनिवार को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की जांच के लिए केंद्र द्वारा गठित पैनल में काम करने से इनकार कर दिया। मगर अब जो जानकारी सामने आई है, उसने कई सवाल खड़े किए हैं। कहा जा रहा है कि अधीर रंजन चौधरी ने पहले कमेटी का सदस्य बनने पर हामी भरी थी लेकिन सूची बाहर आने के बाद इससे इनकार कर दिया।
दरअसल, न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने सरकारी सूत्र के हवाले से बताया कि कांग्रेस नेता और लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी ने अधिसूचना जारी होने से पहले समिति का हिस्सा बनने के लिए अपनी सहमति दे दी थी।
विशेष रूप से, चौधरी, जिन्हें 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की जांच के लिए शनिवार को केंद्र द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति (एचएलसी) का सदस्य नामित किया गया था, ने पैनल में काम करने से इनकार कर दिया है।
उन्होंने शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इसके "इसके निष्कर्षों की गारंटी के लिए संदर्भ की शर्तें तैयार की गई हैं।"
चौधरी द्वारा लिखे पत्र में कहा गया, "आम चुनावों से कुछ महीने पहले, संवैधानिक रूप से संदिग्ध, व्यावहारिक रूप से गैर-व्यवहार्य और तार्किक रूप से कार्यान्वयन योग्य विचार को राष्ट्र पर थोपने का अचानक प्रयास, सरकार के गुप्त उद्देश्यों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है।"
गौरतलब है कि केंद्रीय कानून मंत्रालय ने शनिवार को पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति में आठ सदस्यों को नामित किया, जो लोकसभा, विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के एक साथ चुनाव के मुद्दे की जांच करेगी।
समिति में अध्यक्ष के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष, सी. कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल होंगे।
बता दें कि समिति का गठन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले और अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले किया गया है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने शुक्रवार को समिति के गठन की जानकारी दी थी।
इस साल के अंत में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और 2024 में होने वाले आम चुनावों के साथ कुछ और राज्यों में चुनाव होने हैं, ऐसी अटकलें हैं कि एक राष्ट्र, एक चुनाव बहुत जल्द वास्तविकता बन सकता है।
यदि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' लागू होता है तो इसका मतलब यह हो सकता है कि पूरे भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे, और मतदान भी एक ही समय पर होगा।
गौरतलब है कि 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव होते रहे। लेकिन, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया और उसके बाद 1970 में लोकसभा को भंग कर दिया गया। इससे देश और राज्यों के लिए चुनावी कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ा।
भाजपा ने सबसे पहले एक राष्ट्र, एक चुनाव का संकल्प 2014 के चुनाव घोषणापत्र में लिया था। साल 2020 में पीएम मोदी ने कहा भी था, "एक राष्ट्र, एक चुनाव न केवल बहस का विषय है बल्कि भारत के लिए एक आवश्यकता है। भारत में हर महीने एक चुनाव होता है, जिससे विकास बाधित होता है। देश को इतना पैसा बर्बाद क्यों करना चाहिए?"
बता दें कि दिसंबर 2022 में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों, भारत के चुनाव आयोग, नौकरशाहों और अन्य विशेषज्ञों की राय मांगी थी। लाज़मी है कि अब राष्ट्रपति कोविन्द के नेतृत्व में नवगठित समिति के साथ यह उम्मीद है कि सरकार इस प्रस्ताव पर तेजी से काम करेगी।