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गांधी शांति पुरस्कार विवाद: अनुराग ठाकुर बोले "कांग्रेस हमेशा हिंदुओं के खिलाफ रही है..."

गीता प्रेस गोरखपुर को "गांधी शांति पुरस्कार" देने के निर्णय पर केंद्र सरकार और विपक्षी दलों में...
गांधी शांति पुरस्कार विवाद: अनुराग ठाकुर बोले

गीता प्रेस गोरखपुर को "गांधी शांति पुरस्कार" देने के निर्णय पर केंद्र सरकार और विपक्षी दलों में बयानबाजी का दौर जारी है। अब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस को घेरते हुए गंभीर आरोप लगाए और कहा कि कांग्रेस हमेशा से हिंदुओं के खिलाफ रही है।

दरअसल, "गीता प्रेस गोरखपुर" को वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा होने के ठीक बाद देशभर की सियासत गरमा गई है। 1923 में स्थापित हुई गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। खासतौर पर इनमें श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं।

इसे लेकर कांग्रेस के नेता भी मुखर हैं और निर्णय की आलोचना कर रहे हैं। अब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एएनआई से कहा, "गीता प्रेस में छपी किताबें, शास्त्र या महाकाव्य सभी हिंदू घरों में मौजूद हैं। कांग्रेस हमेशा हिंदुओं के खिलाफ रही है और समय समय पर उनके नेताओं ने हिंदू धर्म को तुष्टिकरण और राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया है।"

संस्कृति मंत्रालय ने पिछले दिनों इस पुरस्कार की घोषणा की और इसके तुरंत बाद से ही राजनीति छिड़ गई। बता दें कि गांधी शांति पुरस्कार 2021, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा मानवीय पहलू के लिए किए गए उत्कृष्ट कार्यों और सही मायनों में गांधी के व्यक्तित्व को ज़िंदा रखने में सहायक भूमिका निभाने के काम को प्रकाशित करता है।

संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने सर्वसम्मति से गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर का चयन करने का फैसला किया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस फैसले को "उपहास" करार दिया और कहा कि यह, "सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने" जैसा है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, "वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया गया है। अक्षय मुकुल द्वारा इस संगठन की 2015 की एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी है, जिसमें वह महात्मा के साथ इसके तूफानी संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का पता लगाता है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।"

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