नीतीश कुमार चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन, इस बार वो चुनाव परिणाम में महज 43 सीटें जीतने के बाद एनडीए में छोटे भाई की भूमिका हैं और भाजपा 74 सीटें जीतने के साथ बड़े भाई की भूमिका में। अब ये भूमिका चुनाव तक ही सीमित रहता नहीं दिखाई दे रहा है। लगातार नीतीश कुमार और भाजपा-केंद्र सरकार आमने-सामने कई मुद्दों पर आ रही है। आलम ये है कि नीतीश कुमार एक तरफ जातीय जनगणना कराने पर जोर दे रहे हैं जबकि भाजपा इसे नकार रही है। परिस्थिति गठबंधन के भीतर उलट दिखाई दे रही है। जिस नीति को नीतीश नापसंद कर रहे हैं उस पर भाजपा जोर दे रही है।
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नीतीश कुमार का कहना है कि जनसंख्या नीति बनाए जाने की जरूरत नहीं है। जबकि भाजपा का कहना है कि बेहतर समाज और विकास के लिए इसकी सख्त जरूरत है। जातीय जनगणना को लेकर बातचीत के लिए सीएम नीतीश ने गुरुवार को पीएम मोदी को पत्र लिखकर बातचीत का समय मांगा था। लेकिन, अभी तक उन्हें समय नहीं मिल पाया है। जिसके बाद सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश ने जाति आधारित जनगणना कराने पर एक बार फिर जोर दिया।
नीतीश का कहना है कि जाति आधारित जनगणना से सभी जातियों को मदद मिलेगी और उनकी सही संख्या पता चल सकेगी। इसके आधार पर नीतियां बनाई जा सकेंगी।
जाति आधार जनगणना के मुद्दे पर सीएम नीतीश को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सरीखे विपक्षी दलों का समर्थन मिल चुका है। वहीं, बीजेपी इससे इंकार कर रही है। केंद्र का कहना है कि इसकी जरूरत नहीं है। वो नीतीश के इस प्रस्ताव को खारीज कर चुकी है। वहीं, बीजेपी जनसंख्या कानून पर जोर दे रही है जिसे नीतीश खारिज कर रहे हैं।
ये एक मामले नहीं है जिस पर नीतीश और भाजपा की राय अलग-अलग है। भाजपा नेता और पंचायती राज मंत्री लगातार नीतीश के खिलाफ और अपनी पार्टी को मजबूत करने-अगली बार राज्य में बीजेपी की सरकार बनाने पर जोर दे रहे हैं। सम्राट चौधरी ने पंचायत चुनाव में जनसख्या नीति लागू करने की वकालत की थी, जिसे नीतीश ने खारिज कर दिया था। वहीं, बीजेपी सीएए मुद्दे को दोहराने से नहीं चूक रही है जबकि नीतीश इससे अलग राय रख रहे हैं।
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश एनडीए खेमे में कमजोर नजर आ रहे हैं। इस बार भी मोदी मंत्रिमंडल में एक ही सीट मिली है, हालांकि इस बार आरसीपी सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। अब ललन सिंह को अध्यक्ष बना दिया गया है। अरूणाचल प्रदेश जेडीयू इकाई के छह विधायक जनवरी महीने के आस-पास भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसके बाद जेडीयू ने भाजपा के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी।
राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि भाजपा अब राज्य में अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है। इसीलिए चिराग को नीतीश के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा गया था। इस बात को चिराग ने भी कहा था कि बिहार एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने के फैसले के बारे में बीजेपी के साथ चर्चा की गई थी। इस चुनाव में चिराग ने नीतीश को भारी नुकसान पहुंचाया था।