पार्टी में दरकिनार कर दिये जाने के बाद मोदी सरकार की अक्सर आलोचना करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि भारत को आवेदक के तौर पर एनएसजी में शामिल नहीं होना चाहिए और एनएसजी की सदस्यता स्वीकार नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसे जो जरूरत थी, वह पहले ही पा चुका है।
83 वर्षीय सिन्हा ने कहा, एनएसजी की सदस्यता पाने में भारत ने जो इतनी उत्सुकता और उतावलापन दिखाया, उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। हम एनएसजी के बाहर आराम से हैं। अगर हम एनएसजी के सदस्य बन जाते हैं तो हमें अधिक नुकसान होगा। हमें कोई फायदा नहीं होगा। उन्होंने कहा, मैं पुरजोर तरीके से यह बात कहता हूं कि भारत को एनएसजी की सदस्यता स्वीकार नहीं करनी चाहिए। हमें वहां आवेदक के तौर पर नहीं जाना चाहिए। हमें जो पाना था, हमें मिल गया।
दो दिन पहले ही 48 सदस्यीय एनएसजी के पूर्ण सत्र में इसका सदस्य बनने के भारत के प्रयासों को विफलता मिली थी। सियोल में आयोजित पूर्ण सत्र से पहले भारत ने कई देशों के साथ अपना पक्ष रखा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभालते हुए ताशकंद में शंंघाई सहयोग संगठन :एससीओ: के सम्मेलन से इतर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात कर इस संबंध में सकारात्मक फैसला करने का आग्रह किया था। चीन भारत जैसे एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को एनएसजी में शामिल नहीं करने के अपने रुख पर कायम रहा।
सिन्हा ने कहा, मुझे नहीं पता कि सरकार में बैठे लोग इस मुद्दे को समझते हैं या नहीं। लेकिन मुझे यह पता है कि एेसे लोग सरकार में बैठे हैं, जो हर दिन उसे गुमराह कर रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश मंत्री रहे सिन्हा ने मोदी सरकार की विदेश नीति के कई पहलुओं और खासतौर पर पाकिस्तान से निपटने के तरीके के खिलाफ अपने विचार रखे हैं।