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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सोच और ढांचे में बदलाव

राजस्थान के नागौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक से पूर्व संघप्रमुख मोहन भागवत और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में मिलजुल कर काम करने की सहमति बनी। शाह ने संघप्रमुख को भरोसा भी दिलाया कि इस एजेंडे को लेकर सरकार पर दबाव भी बनाया जाएगा। भाजपा अध्यक्ष के आश्वासन के बाद ही संघ ने शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द पर भी प्रस्ताव पारित किया। यह प्रस्ताव सरकार और संघ के विचारों से काफी मेल खाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सोच और ढांचे में बदलाव

संघ के सर कार्यवाह सुरेश भैया जोशी कहते भी हैं कि हम अड़ियल रुख नहीं रखते और समय के हिसाब से फैसले लेते हैं। इसी फैसले का परिणाम रहा कि संघ ने अपनी वेशभूषा में भी परिवर्तन किया और खाकी निकर की जगह ब्राउन कलर की पतलून शामिल किया गया।

संघ नेताओं को इस बात का भरोसा है कि सरकार उनके एजेंडे पर काम करेगी। इसकी झलक भी साल 2016-17 के लिए घोषित आम बजट में दिखाई पड़ी जब सरकार ने यह घोषणा की कि 3000 औषधि केंद्र खोले जाएंगे जहां नि:शुल्क दवाइयां उपलब्‍ध होंगी। संघ के एक वरिष्ठ रणनीतिकार के मुताबिक देश में महंगी औषधियों पर लगाम लगाने और जेनेरिक औषधियों का उपयोग बढ़ाने की दिशा में सरकार कदम बढ़ा चुकी है। भले ही उसकी झलक अभी न दिखाई पड़ रही हो लेकिन आने वाले दिनों में संघ के दबाव का असर दिखने लगेगा। गौरतलब है कि हाल ही में सरकार ने कुछ दवाइयों पर प्रतिबंध लगाया तो कुछ के लिए मानक तय किए हैं।

शिक्षा के क्षेत्र के लिए संघ का सुझाव सरकार के लिए मान्य है क्योंकि गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती शिक्षा के लिए सरकार भी प्रतिबध है और संघ का भी यही प्रस्ताव है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। संघ की बैठक में महिला और मंदिर प्रवेश, सुरक्षा संस्थानों में आतंकियों का प्रवेश, विश्वविद्यालयों में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां, देश में बढ़ता सांप्रदायिक उन्माद तो चर्चा का विषय था ही, इसके अलावा राम मंदिर के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। राम मंदिर के निर्माण के लिए औपचारिक तौर पर तो संघ ने कोई प्रस्ताव नहीं पारित किया लेकिन सूत्र बताते हैं कि मामला अदालत में विचाराधीन है और फैसला आने के बाद ही संघ इस दिशा में काम करेगा। अगर फैसले में देरी हुई तब जाकर सरकार पर कानून बनाने के लिए दबाव डाला जाएगा। संघ द्वारा आरक्षण के मुद्दे का राग अलापना भी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। दरअसल, संघ पहले से ही यह कहता रहा है कि आरक्षण को लेकर एक देशव्यापी बहस हो। इस बहस से इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि वास्तव में जो आरक्षण के हकदार हैं उनको हक मिल रहा है या नहीं। क्यांेकि इस बहस से वंचित तबका संघ के साथ जुड़ेगा। इसके साथ ही दलित एजेंडे पर संघ नेताओं की राय है कि आजादी के बाद से यह तबका कांग्रेस के साथ रहा और बाद में अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चला गया लेकिन भाजपा के साथ नहीं जुड़ा। ऐसे में संघ नेता इस तबके को भी अपने साथ लेने की रणनीति बना रहे हैं। इसके साथ ही संघ का महिलाओं के प्रति भी अपना नजरिया बदल रहा है इसलिए महिलाओं के मंदिर में प्रवेश जैसे मुद्दे को प्राथमिकता में शामिल कर रहा है। संघ नेताओं का मानना है कि भारत में प्राचीन काल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में पूजा-पाठ की दृष्टि से महिला-पुरुषों की सहभागिता सहजता से रही है और यही भारतीय परंपरा है। आशय साफ है कि संघ अपनी सोच और ढांचे में बदलाव करते हुए महिलाओं को भी अपनी प्राथमिकता सूची में डाले हुए है। वैसे भी राजनीति में महिलाओं के बढ़ते कद से संघ अपने को अलग नहीं कर सकता।

संघ की स्थापना के लगभग 90 साल के बाद पहली बार साल 2015-16 में बड़ी संख्या में संघ से लोग जुड़े। जिसमें 15 से 40 साल के युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। संघ की वेशभूषा में बदलाव भी इसी रणनीति का हिस्सा है। इस बदलाव के पीछे भी संघ नेताओं का मानना है कि इससे बड़ी संख्या में युवाओं को जोडऩे में मदद मिलेगी। संघ नेता इस बदलाव को सकारात्मक बताते हैं। दिल्ली में संघ के प्रचारक और प्रांत संघसहचालक आलोक कुमार कहते हैं कि बड़ी संख्या में लोग संघ के साथ जुडऩा चाहते हैं। जिनमें युवाओं की संख्या अधिक है। अब भी 8000 लोग संघ से जुड़ने का आग्रह भेज चुके हैं। संघ के सह सर कार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल बताते हैं कि वर्तमान में संघ की 56,859 शाखाएं हो गई हैं जो कि बड़ी उपलब्धि है। संघ की रणनीति है कि आने वाले दिनों में इस संख्या को और बढ़ाया जाएगा। अगर हम केवल दिल्ली की बात करें तो साल 2010 से संघ की शाखाओं में वृद्धि का अभियान शुरू हुआ था। उस समय दिल्ली में 1400 शाखाएं थीं, जो बढक़र वर्तमान में 1898 हो गईं। साल 2015-16 में दिल्ली में संघ की शाखाएं 1780 से बढक़र 1898 हो गई।

संघ की बैठक में इस साल राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर भी चर्चा हुई। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल से ज्यादा संघ की चिंता असम में भाजपा को लेकर है। क्योंकि संघ नेताओं को भरोसा है कि असम में भाजपा ज्यादा मजबूत है और विधानसभा चुनाव में सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब आदि राज्यों को लेकर स्वयंसेवकों और प्रचारकों को काम की जिम्मेवारी सौंपी गई ताकि इन राज्यों में भाजपा को मजबूत बनाया जा सके। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को लेकर संघ की चिंताएं कुछ बढ़ी हुई थीं क्योंकि भाजपा इस राज्य में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी या नहीं इसको लेकर भी आशंका बनी हुई है। लोकसभा चुनाव में संघ कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी लेकिन अब कैसे माहौल बनेगा इसको लेकर भी संघ रणनीति बनाने में जुटा है। 

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