संघ ने कहा, देश में चाहे जो शासन पसंद हो, इन्हें नेहरू माॅडल से इतर कुछ स्वीकार नहीं। वही नेहरू जिन्होंने 1938 में जिन्ना को लिखे पत्र में गोहत्या करना मुसलमानों का मौलिक अधिकार माना था। कांग्रेसी राज्य रहने पर गोहत्या जारी रखने का वचन दिया था। इतना ही नहीं गोहत्या जारी रखने के लिए प्रधानमंत्री पद तक छोड़ने की घोषणा की थी।
अपना प्रहार जारी रखते हुए संघ के मुखपत्र पांचजन्य के दिन पलटे, बात उलटी शीर्षक के संपादकीय में कहा गया कि हिन्दू धर्म को विकृत करने वाले एेसे लेखकों को वही नेहरू माॅडल चाहिए। सिख दंगों के दोषियों केे हाथों से सम्मानित होने में ये बुद्धिजीवी आहत नहीं हुए थे। अल्पसंख्यक की सेकुलर परिभाषा सिर्फ एक वर्ग तक सिमटी है।
संपादकीय में आगे लिखा है, कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं के लिए इनके मुंह से एक बोल न फूटा था क्योंकि इनके हिसाब से हिन्दुओं के मानवाधिकार जैसी कोई चीज होती नहीं है। लेकिन अब राज बदला, कामकाज बदला, पूछ परख कुछ रही नहीं तो बात बर्दाश्त से बाहर हो रही है। और असहिष्णु बुद्धिजीवियों ने अपनी कुनमुनाहट उजागर कर दी है। जनता सच तलाशने लगी है। बौखलाहट इसलिए है क्योंकि कुर्सी जा चुकी है लेकिन कसक बाकी है।
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश के दादरी में गोमांस सेवन की अफवाह के चलते अखलाक नामक एक व्यक्ति की भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या करने की घटना सहित कन्नड़ लेखक कलबुर्गी एवं कुछ अन्य तर्कवादियों की हत्या के विरोध के चलते नयनतारा सहगल समेत लगभग 21 लेखक अब तक अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं।