इस बीच, प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने मोहन भागवत को पत्र लिखकर उनसे शुचिता एवं नैतिकता का हवाला देकर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की बात की। इसी तारतम्य में प्रदेश प्रभारी कांग्रेस महासचिव मोहन प्रकाश ने कहा कि संघ प्रमुख एवं भाजपा प्रमुख दोनों ही भोपाल में हैं। संघ प्रमुख बिना किसी कार्यक्रम के भोपाल में रुके हुए हैं। उनसे मांग है कि वे व्यापमं घोटाले के लिए जिम्मेदार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का इस्तीफा लेकर ही भोपाल से वापस जाएं।
उधर, व्यापमं की जांच के लिए सीबीआई ने एसटीएफ से केस अपने हाथ में ले लिया। अब अधिकारिक रूप से व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई करेगी। यद्यपि कांग्रेस सिर्फ सीबीआई जांच से संतुष्ट नहीं है और वह इसकी
निगरानी सर्वोच्च न्यायालय से चाहती है। कांग्रेस कल से पूरे प्रदेश में व्यापमं के मुद्दे पर गांव-गांव जनसंपर्क पर निकल चुकी है और 16 जुलाई को प्रदेश बंद का आह्वान किया है। मोहन प्रकाश ने हाईकोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्पेंद्र कौरव को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि कौरव व्यापमं के वकील होने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच नहीं होने देने के लिए पैरवी करने वाले भी थे। उन्हें व्यापमं की अध्यक्ष रंजना चौधरी ने वकील बनाया था, जिनसे घोटाले को लेकर पूछताछ करने और अभियुक्त बनाने की मांग कांग्रेस कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कौरव मुख्यमंत्री निवास पर भाजपा प्रवक्ताओं को व्यापमं मसले पर जवाब देने की टिप्स दे रहे हैं।
व्यापमं की भेंट चढ़ेगा मानसून सत्र
व्यापमं के मुद्दे पर हंगामे से मध्यप्रदेश विधानसभा के बजट सत्र की तरह मानसून सत्र भी नहीं चलने के आसार हैं। मध्यप्रदेश में 20 जुलाई से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है, लेकिन व्यापमं घोटाले की वजह से सत्र निर्धारित समय तक चल पाएगा, इसकी संभावनाएं कम दिख रही हैं। पिछले दो-तीन सालों से सत्र के दरम्यान जब-जब विपक्ष के तेवर तीखे दिखे हैं, तब-तब सत्र निर्धारित समय से पूर्व ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया है। व्यापमं पर चौतरफा घिरी हुई प्रदेश सरकार को विधानसभा में भी विपक्ष के तीखे सवालों का जवाब देना होगा। ऐसे में सत्र के हंगामेदार होने की संभावनाएं हैं। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे कहते हैं, ‘‘हमने बजट सत्र में भी व्यापमं के मुद्दे को उठाया था, तब सरकार इस पर बहस करने के बजाय सदन को नहीं चलने देने के लिए विपक्ष को दोषी ठहरा रही थी। अब तो यह साफ हो गया कि उस समय हमारी मांग कितनी जायज थी।यदि उस समय हमारी मांग मान ली जाती, तो शायद इतनी जानें नहीं जाती।’’