जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत ने कुछ ही महीने बाद इस्तीफा दे दिया था, तब से ये अटकलें लगाई जा रही थी कि इसके पीछे बीजेपी की बहुत बड़ी चाल हो सकती है। अब वो चाल धीरे-धीरे दिखाई भी देने लगा है। दरअसल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ परेशानी पैदा करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने रावत का इस्तीफे लेने की योजना बनाई थी।
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नंदीग्राम से 1956 वोटों के मामूली अंतर से विधानसभा चुनाव हारने वाली बनर्जी को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने के लिए छह महीने के अंदर चुने जाने की जरूरत है। उनके अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र भवानीपुर से चुनाव लड़ने की संभावना है, जिसे टीएमसी के निर्वाचित विधायक शोभंडेब चट्टोपाध्याय ने पहले ही खाली कर दिया है। हालांकि, चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में उपचुनावों को टालने के लिए कोविड-19 का हवाला दे सकता है।
अब यही बात ममता को परेशान कर रही है, क्योंकि, करीब दो महीने का वक्त ही उनके छह महीने के कार्यकाल के पूरा होने में बचा है। इस दौरान उन्हें विधानसभा का सदस्य बनना होगा, नहीं तो इस्तीफा देना होगा।
गौरतलब है कि रावत ने अपने इस्तीफे पत्र में मई में तीन लोकसभा और आठ विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव रद्द करने के चुनाव आयोग के फैसले का जिक्र करते हुए कोविड-19 की स्थिति पर हवाला दिया था। संवैधानिक मुद्दे का उल्लेख करते हुए उसने कहा था कि उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा के लिए अनिवार्य रूप से निर्वाचित होना था। रावत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (पीआरए), 1951 के अनुच्छेद 151 ए में कहा गया है कि यदि विधानसभा का शेष कार्यकाल एक साल से कम है तो उपचुनाव नहीं हो सकते हैं।
फिर से 23 अगस्त को ममता बनर्जी ने कहा था कि राज्य में कोरोना संक्रमण के मामले नियंत्रित हैं और राज्य में जल्द से जल्द उपचुनाव कराए जाने की तारीखों की घोषणा की जानी चाहिए। इसी बाबत टीएमसी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल में सांसद सौगत रॉय, सुखेंदु शेखर, जौहर सरकार, सजदा अहमद, और महुआ मोइत्रा ने पिछले दिनों चुनाव आयोग से मुलाकात की थी। लेकिन, अभी तक आयोग का कोई रूख स्पष्ट नहीं पाया है।
नंदीग्राम में भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को मात दी थी। हालांकि, वर्तमान में ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री हैं बावजूद उन्हें नियमानुसार 6 महीने के भीतर ही किसी भी विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज करनी होगी। तभी वे मुख्यमंत्री के पद पर बनी रह सकती है वरना उन्हें कुर्सी त्यागनी पड़ेगी।