उन्होंने कहा, भारत के राष्ट्रीय चरित्र के लिए मुनासिब नहीं रहने वाली संसदीय प्रणाली के साथ हमारे अटके होने की एक वजह है कि इस व्यवस्था को अंग्रेजों ने चलाया था और हमें हर चीज को मूर्त रूप देने के लिए हमेशा अंग्रेजों की ओर निहारने की आदत रही है।
जयपुर साहित्य महोत्सव के अंतिम दिन ऑन अंपायर नाम से आयोजित सत्र में थरूर ब्रिटिश लेबर पार्टी के सांसद टिस्टम हंट और पत्रकार स्वप्न दासगुप्ता से भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में चर्चा कर रहे थे। पूर्व मंत्री ने इस बारे में एक डायरी के अंश को याद किया कि किस तरह भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने उस समय डर भरी प्रतिक्रिया दी थी जब साइमन आयोग के सदस्य क्लीमेंट एटली ने कहा था कि देश के लिए राष्ट्रपति प्रणाली बेहतर होगी।
थरूर ने कहा, भविष्य में संविधान के विचार को अधिक सैद्धांतिक तरीके से तलाशने के लिए 1930 में साइमन आयोग बनाया गया था। उस आयोग के सदस्य क्लीमेंट एटली ने अपनी डायरी में लिखा था कि उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं को सुझाव दिया था कि राष्ट्रपति प्रणाली बेहतर होगी। उन्होंने कहा कि नेताओं ने डर भरी प्रतिक्रिया दी। तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि देश में धरोहर संस्थानों के लिए भारत अंग्रेजों का आभारी हो। उन्होंने कहा, हमारी सरकार की शासन व्यवस्था ऐसी है जिसे एक छोटे द्वीप में बनाया गया जिसकी आबादी आज छह करोड़ है और हर सांसद करीब एक लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।