सरकार गठन को लेकर तीन महीने के गतिरोध के समाप्त करते हुए शनिवार को पीडीपी प्रमुख ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार के गठन का दावा किया था और इसके साथ ही वह जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं।
पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया है, भाजपा और महबूबा कभी एक-दूसरे संग सहज नहीं रहे हैं। महबूबा की राष्ट्र-विरोधी बातचीत और चरमपंथियों के प्रति उनके अपनेपन ने अतीत में विवादों को जन्म दिया है और उन्होंने खुले तौर पर राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने वालों के प्रति नरम रवैया अपनाया है। शिवसेना ने कहा, भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिए उनका समर्थन कर संतुष्ट हो सकती है लेकिन देश इसे लेकर चिंतित है। भाजपा का यह मानना है कि भारत माता की जय बोलना देशभक्ति और राष्ट्रीता को व्यक्त करने का एक तरीका है। लेकिन क्या महबूबा यह नारा लगाएंगी? शिवसेना ने कहा कि लाखों कश्मीरी पंडितों ने आतंकी हमलों की वजह से अपनी जान गंवा दी है। अब कश्मीरी पंडितों के जीवन को वापस पटरी पर लाने की जिम्मेदारी भाजपा और पीडीपी की है।
शिवसेना के अनुसार कश्मीरी पंडितों ने भारत माता की जय बोलते हुए अपनी जान दे दी और उनके खून से लथपथ भूमि पर नई सरकार का गठन होगा। इसलिए देश को महबूबा से उम्मीद है कि वह मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले भारत माता की जय बोलें। शिवसेना ने पूछा कि क्या संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को लेकर महबूबा का रुख बदल गया है? शिवसेना ने इस बात पर जोर दिया कि महबूबा की पार्टी ने अफजल को आतंकवादी मानने से भी इनकार कर दिया था। शिवसेना ने सवाल किया, क्या महबूबा अब भी चाहती हैं कि अफजल गुरु के शव को तिहाड़ जेल से खोदकर बाहर निकाला जाए और इसे एक शहीद को दिए जाने वाले सम्मान के साथ कश्मीर में दफन किया जाए? क्या वह मन में राष्ट्रवादी विचारों को रखते हुए राज्य की बागडोर संभालने के लिए राजी होगीं?