बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अब सबकी नजरें अगले साल 2021 के अप्रैल-मई महीने में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर हैं। बंगाल को मौजूदा मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी का गढ़ माना जाता है। अब भाजपा बिहार के बाद बंगाल को भेदने की तैयारी में है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अभी से हीं प्रदेश का दौरा शुरू कर दिया हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हीं गृह मंत्री अमित शाह ने बंगाल का दौरा किया था। ममता की मुश्किल इसलिए भी बढ़ती दिख रही है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कई नेता हाल हीं में भाजपा का दामन थाम लिया है। पीटीआई से बातचीत में ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार ने कहा है कि बिहार जैसे मुकाबले बंगाल में देखने को मिलेंगे। यानी टीएमसी और बीजेपी के बीच क्लोज फाइट देखने को मिलेगा।
संजय कुमार का कहना है कि बिहार चुनाव के नतीजे से भाजपा का मनोबल बढ़ा है और यही वजह है कि उनके नेताओं के पश्चिम बंगाल में कार्यक्रम जोर-शोरों पर हैं। इससे कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा है। इसमें कोई शक नहीं है कि वहां भाजपा का जनाधार बढ़ा है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस से एक-दो नेताओं के जाने से कोई बड़ा संकेत नहीं मिलता है।
बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक कुछ महीने पहले तक इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य में एनडीए के लिए मुकाबला एकतरफा है लेकिन राजद नेता तेजस्वी की अगुवाई वाली महागठबंधन ने एनडीए को कड़ा टक्कर दिया। लेकिन तेजस्वी लाख जद्दोजहद के बावजूद सरकार बनाने से चूक गएं। इसका एक कारण पार्टी के नेताओं का रहा कि कांग्रेस को 70 सीटें देकर राजद ने गलती की। क्योंकि कांग्रेस सिर्फ बीस के करीब सीटें हीं जीतने में कामयाब रही जबकि लेफ्ट का जनाधार काफी बढ़ा।
इस बात की भी चर्चा है कि वाम दलों और कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है तो कुछ लोग सभी प्रमुख भाजपा विरोधी दलों के एकजुट होने की स्थिति बनते देख रहे हैं। चुनाव में इसके असर को लेकर संजय कुमार कहते हैं, "अगर तृणमूल कांग्रेस, वाम दल और कांग्रेस गठबंधन करते हैं तो भाजपा इसका फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेगी। वह कहेगी कि ये लोग उसके खिलाफ साथ आ गए हैं। ऐसे में उसे फायदा हो सकता है। लेकिन अगर सिर्फ वाम दल और कांग्रेस का गठबंधन होता है तो यह ममता बनर्जी के फायदे वाली स्थिति हो सकती।" यानी यदि ममता गठबंधन करती है तो सीट को लेकर भी ध्यान रखना होगा।
ममता बनर्जी को भी बिहार से सबक लेने होंगे। क्योंकि, भाजपा का मनोबल इस जीत के बाद काफी बढ़ा है और वो दीदी के हर किले को भेदने की कोशिश करेगी। तेजस्वी यादव बिहार में जातिगत राजनीति को किनारे करते हुए और पीएम मोदी पर निशाना न साधकर राज्य के जमीनी मुद्दे को उठाया जिससे महागठबंधन को अच्छी-खासी सीटें मिली है। लेकिन, रोजगार और युवाओं के मुद्दे उठाने के बावजूद भी तेजस्वी सीएम बनने से चूक गए।
ममता बनर्जी को कई बार देखा गया है कि वो सीधे तौर पर पीएम मोदी पर निशाना साधते हैं। पीएम ने इन छह सालों में दुनिया के साथ देश की राजनीति में अपनी छवि को पार्टी के लकीर से इतर भी इंगित करने में सफल रहे हैं। लोकप्रिय नेता के तौर पर उनका रूतबा लगातार बढ़ा है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि बंगाल में भाजपा तुष्टिकरण की राजनीति को चुनाव प्रचार में जोर-शोर से हवा देगी। अब इंतजार बंगला चुनाव का...।