पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मोदी सरकार के जमाने में भारत रत्न मिल रहा है। मोदी सरकार ने वाजपेयी का नाम भारत रत्न के लिए क्यों चुना इस पर कई मत हैं। लेकिन इतना तय है कि मोदी, वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करते हैं और कई मामलों में तो उनकी नकल भी करने की कोशिश करते हैं। एक ही विचारधारात्मक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खांचे से ढलकर निकलने के बावजूद दोनों के व्यक्तित्व के डिजाइन अलग हैं। देखिए:
विदेश मंत्रालय ने 1986 बैच के आइएफएस अफसर विकास स्वरूप को नया प्रवक्ता नियुक्त किया है। वह अकबरूद्दीन का स्थान लेंगे। इलाहबाद विश्वविद्यालय से स्नातक स्वरूप क्यू एंड ए किताब से खासे चर्चित रहे हैं
बीते बारह सालों में भारतीय राजनीति में बड़ा उतार-चढ़ाव रहा है। साल 2002 की अगर बात करें तो केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे।
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।