राजस्थान के दौसा जिले में अजीबो गरीब मामला सामने आया है। सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत अनाज लेने वाले परिवारों के घरों के बाहर ‘मैं गरीब परिवार से हूं’ लिखवा दिया है।
स्वास्थ्य गड़बड़ होने पर मुंह का स्वाद बदल जाता है। इसी तरह भारत में मौसम के साथ महंगाई बढ़ने पर आम आदमी के दांत खट्टे भले ही न हों, दाल खट्टी और चीनी कड़वी लगने लगती है। एक तरफ किसानों को अनाज, तिलहन और गन्ने का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज से तंग आकर लोग आत्महत्या करते हैं, दूसरी तरफ कालाबाजारी और सूदखोर दलाल एवं व्यापारियों का एक वर्ग मनमाने ढंग से मूल्य वसूलते हैं।
पंजाब की अनाज मंडियों में इस दफा रौनक का वैसा आलम नहीं है जैसा अक्सर होता है। बेमौसमी बारिश और ओलों की वजह से पहले ही गेहूं की पैदावार को नुकसान पहुंचा है और रही-सही कसर राज्य के गोदामों से चोरी हुए अनाज ने पूरी कर दी। लगभग 20,000 करोड़ रुपये के इस अनाज घोटाले ने राज्य में अकाली-भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है और बैंकों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं लेकिन इसका सबसे अधिक नजला किसानों पर गिरा है।