स्मार्ट सिटी बनाने की केंद्र सरकार की जो पहल है वह सियासी रुप ले रही है। बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लोगों की नाराजगी इस बात पर है कि पहले चरण में इन राज्यों से स्मार्ट सिटी के रुप में किसी शहर को नहीं शामिल किया गया।
केंद्रीय भूतल परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को कहा कि देश में यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई को 96 हजार से बढ़ाकर दो लाख किलोमीटर करने का फैसला किया है।
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी किसके सहारे आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी इसको लेकर रस्साकसी जारी है। मौजूदा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की जगह किसको प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा यह भी पार्टी के लिए कड़ी चुनौती है।
उत्तर कोरिया ने रविवार को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय जगत को हैरत में डालते हुए नाराज कर दिया। उत्तर कोरिया ने एक सरकारी समाचार एजेंसी के जरिये ऐलान किया कि उसने रॉकेट प्रक्षेपण के जरिए एक उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया है। उत्तर कोरिया के रॉकेट प्रक्षेपण की निंदा बैलिस्टक मिसाइल के परीक्षण के तौर पर की जा रही है, जिसकी जद में अमेरिका आता है।
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने कहा है कि गन्ना किसानों को प्रदेश सरकार ने सर्वाधिक भुगतान किया है। आउटलुक के 1 से 15 फरवरी के अंक में गन्ना किसानों की बदहाली को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसमें किसानों ने अपना गुस्सा जाहिर किया है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अगले माह होने वाले विधानपरिषद के चुनाव के लिए टिकट देने में युवाओं को तरजीह दिया है। इतना ही नहीं हाल में पार्टी से निष्कासित दो युवा नेता सुनील सिंह साजन और आनंद भदौरिया को भी टिकट देकर यह जता दिया है कि इन लोगों को गलत आरोपों में निष्कासित कर दिया गया था।
एक दौर था जब प्रदेश के किसान नकदी फसल गन्ने को अपनी लाठी मानते थे। सूबे की 124 चीनी मिलें सूरसा के मुंह जैसी खेतों की ओर ताकती रहती थीं और दिन रात गन्ने की ही फरमाईश करती थीं मगर अब यह लाठी जैसे टूट गई है और 'सुरसा’ भी न जाने कहां बिला गई है। प्रदेश में गन्ने की फसल को राजनीति का ऐसा घुन लगा है कि खेत, फसल और किसान सब चौपट हो रहे हैं। आलम यह है कि गन्ना उगाने की लागत सवा तीन सौ रुपए क्विंटल आ रही है मगर किसान को मिल रहे हैं मात्र 280 रुपए। वह भी रुला-रुलाकर।
हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में उच्च शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर चिंता प्रकट की मगर साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर संतोष भी जताया कि निजी शिक्षा के क्षेत्र में फैलाव से उच्च शिक्षा तक छात्रों की पहुंच बढ़ गई है। आंकड़े दिखाते हैं कि राष्ट्रपति की दोनों ही बातों में दम है। वर्तमान में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 60 फीसदी छात्र निजी संस्थानों से हैं। निजी शिक्षा के प्रसार ने ऊंची शिक्षा तक पहुंच को बढ़ा दिया है लेकिन समय-समय पर सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। संसद की एक समिति ने भी उच्च शिक्षा की दशा पर सवाल उठाए हैं और इसे दुरुस्त करने की सिफारिश की है। हालांकि शिक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014-15 के बजट में शिक्षा के बजट को 83 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 69 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया और इससे अगले साल के बजट में भी इसमें बढ़ोतरी नहीं की गई।