वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं। हालांकि इनकी गिनती इससे कहीं ज्यादा है। इनके अधिकारों की बात करें तो तमिलनाडु राज्य में इन्हें सबसे अधिक अधिकार प्राप्त हैं।
सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।
बच्चों को शिक्षा के लिए सदमे और डर से मुक्त माहौल देने के लिए शारीरिक दंड एवं वार्षिक परीक्षा आधारित पास-फेल की प्रणाली खत्म कर दी जा रही है। इसके बदले निरंतर मूल्यांकन की व्यवस्था की गई है। विधेयक में सभी विद्यालयों के पाठ्याचार को संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप ढालने का प्रावधान किया है। इससे कुछ संस्थाओं, संगठनों के स्कूलों में सांप्रदायिक और इस तरह के अन्य एजेंडे को सीमित करने मे मदद मिलेगी।