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Search Result : "काल चक्र"

भारत पर एंडीसन की टिप्पणी से जुकरबर्ग ने पल्‍ला झाड़ा

भारत पर एंडीसन की टिप्पणी से जुकरबर्ग ने पल्‍ला झाड़ा

फेसबुक के संस्थापक और प्रमुख मार्क जुकरबर्ग ने कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्‍य मार्क एंडीसन की टिप्पणी से यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया कि उनकी टिप्पणी बेहद परेशान करने वाली है और वह कंपनी की धारणा का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं।
नेहरू की हठ के चलते अधूरा अशोक स्तंभ बना राष्ट्रीय प्रतीक

नेहरू की हठ के चलते अधूरा अशोक स्तंभ बना राष्ट्रीय प्रतीक

अशोक स्तंभ का जो स्वरुप हमारा राष्ट्रीय चिह्न है, वह अशोक स्तंभ का वास्तविक स्वरुप नहीं है। दरअसल असल अशोक स्तंभ में एक चक्र ऊपर भी था जिसमें 32 तीलियां थीं। जब अशोक स्‍तंभ को राष्‍ट्रीय चिह्न के तौर पर अपनाया जा रहा था तब एक सांसद ने इस ओर नेहरू का ध्यान आकृष्ट भी कराया लेकिन उन्‍होंने इसकी अनदेखी कर दी थी।
'तीर' के बजाय इन चुनाव चिह्नों पर है जदयू की नजर

'तीर' के बजाय इन चुनाव चिह्नों पर है जदयू की नजर

बिहार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का रथ रोकने के बाद जनता दल (यूनाइटेड) राज्‍य के बाहर अपने विस्तार की कोशिशों में जुट गई है। इसी योजना के तहत पार्टी जल्द ही नया चुनाव चिह्न हासिल कर सकती है।
संसद सत्र अनिश्चित काल के स्‍थगित, कई महत्चपूर्ण विधेयक अटके

संसद सत्र अनिश्चित काल के स्‍थगित, कई महत्चपूर्ण विधेयक अटके

संसद का एक और सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकसभा और राज्यसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई है। हंगामे के कारण जीएसटी और रियल एस्टेट सहित कई महत्वपूर्ण विधेयक अटक गए। यहां तक की लोकसभा में कल पेश हुआ बैंकरप्सी बिल भी ज्वाइंट कमिटी को भेज दिया गया है। इसके अलावा इंडियन फॉरेस्ट संशोधन विधेयक, सुगर सेश संशोधन विधेयक भी पारित नहीं हो पाया।
धनतेरस पर मिलेंगे अशोक चक्र वाले 'स्‍वदेशी' सोने के सिक्‍के

धनतेरस पर मिलेंगे अशोक चक्र वाले 'स्‍वदेशी' सोने के सिक्‍के

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज आकाशवाणी पर अपने मन की बात कार्यक्रम में बताया है कि सरकार जल्‍द ही स्‍वदेशी सोने के सिक्‍के लाने जा रही है। इन सिक्‍कों पर अशोक चक्र की छाप होगी। पीएम मोदी 5 नवंबर को 5 और 10 ग्राम वाली भारतीय स्‍वर्ण मुद्रा को लांच करेंगे।
फांसी की शर्मनाक छाया

फांसी की शर्मनाक छाया

मौत की सजा के जरिये अपराध की रोकथाम का लक्ष्य विफल हो चुका है। शोध यह साबित करने में लगातार विफल रहे हैं कि मौत की सजा से अपराध पर रोक लगती है।
ये दिल मांगे न्याय

ये दिल मांगे न्याय

करगिल की चोटी से 'ये दिल मांगे मोर’ का नारा देने वाले शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का परिवार आज न्याय के लिए सरकारी तंत्र का चक्कर लगा रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश की जमीन को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन आज उनका परिवार अपनी ही जमीन पाने के लिए भू-माफिया से जूझ रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार के संघर्ष में न तो सरकार का सहयोग मिल रहा है और न प्रशासन का। रोचक तथ्य तो यह है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक गुहार लगाने वाले इस परिवार की सुध लेने से भी मध्य प्रदेश सरकार गुरेज कर रही है।
कहानी - नदी

कहानी - नदी

हृषीकेष सुलभ साहित्य जगत के बहुत प्रतिष्ठित लेखक हैं। ग्रामीण अंचलों की पृष्ठभूमि के अलावा शहरी जीवन की चमक-दमक पर भी उनकी लेखनी उतनी ही सुगमता से चलती है। कहानी संग्रह ‘वसंत के हत्यारे’ के लिए उन्हें 16वां इंदु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान मिला। कहानियों के लिए ही बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, रंगमंच और नाटक लेखन के लिए अनिल कुमार मुखर्जी शिखर सम्मान, रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, पाटलिपुत्र पुरस्कार, सिद्धार्थ कुमार स्मृति सम्मान आदि मिल चुके हैं।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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