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25 साल बाद मंडल-2 की  बड़ी चुनौती

25 साल बाद मंडल-2 की बड़ी चुनौती

1990 में जब प्रधानमंत्री विश्वनाथ सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशाें को लागू करने का कदम उठाया तो उस समय पूरी सियासत ही गरमा गई। जगह-जगह वीपी सिंह के पुतले फूकें जा रहे थे और उनकी सरकार भी गिरा दी गई। पच्चीस साल बाद भी मंडल आयोग की सिफारिशें पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं। मंडल आयोग की रिपोर्ट में 13 अनुशंसाएं की गई थीं लेकिन दो ही अनुशंसाएं लागू हो पाईं।
नियति से निर्वाण की कथा रंग राची

नियति से निर्वाण की कथा रंग राची

मीरांबाई की संघर्ष-यात्रा को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास ‘रंग राची’ आखिरकार पाठकों तक पहुंच ही गया। दिल्ली के साहित्य अकादमी सभागार में नामवर सिंह ने अध्यक्षीय आशीर्वचन दिया। उन्होंने कहा, ‘हिंदी में बहुत कवयित्रियां हुई लेकिन जो स्थान मीरां ने बनाया वह सब के लिए आदर्श है। मीरा को करूणा, दया के पात्र के रूप में देखने की जरूरत नहीं है, मीरां स्त्रियों के स्वाभिमान की प्रतीक हैं।’ इस उपन्यास को सुधाकर अदीब ने लिखा है और यह राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

क्या कारण है कि जिस आडवाणी ने पहली बार जनसंघ का अध्यक्ष बनने पर 1973 में एक झटके में बलराज मधोक जैसी मजबूत शख्सियत को पार्टी से जड़ से उखाड़ फेंका, 1974 में जयप्रकाश आंदोलन के उड़ते तीर को पार्टी के लिए पकड़ बाद की इमरजेंसी के प्लावन मं सांप्रदायिकता की अस्पृश्यता धोने में गजब की फुर्ती दिखाई, संघ परिवार के संगठनों द्वारा आजादी के वक्त से ईंट-बैठाकर सुलगाए जा रहे बाबरी-मस्जिद रामजन्म भूमि के मसले को गरमाने के अवसरवादी क्षण को 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के संकट में अचूक पहचाना, 1996 में भाजपा की सत्ता के लिए अन्य दलों के साथ जरूरी गठजोड़ बनाने के वास्ते खुद पीछे हटकर वाजपेयी को आगे करने की उस्तादी दिखाई, आज वही अपने नेतृत्व में न सहयोगी गठबंधन को उत्साहित कर पाए न अपनी पार्टी की दूसरी प्रांत के नेताओं को?
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