किसानों के उग्र आंदोलन के बाद महाराष्ट्र सरकार एक के बाद एक राहत भरे फैसले ले रही है। राज्य सरकार ने कर्जमाफी के ऐलान के बाद किसानों को रुपये देने का फैसला किया है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मंच पर भारतीय किसान यूनियन के महामंत्री ने भले ही आंदोलन समाप्त करने का ऐलान कर दिया हो लेकिन यूनियन की कार्यकारिणी ने इसका खंडन किया है। ऐसे में सीएम शिवराज की मुसीबतें बढ़ती दिखाई दे रही है।
एक तरफ जहां मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन उग्र होता जा रहा है वहीं कई ऐसे वाकये भी सामने आ रहे हैं जो काफी तकलीफदेह हैं। एक बुजुर्ग महिला ने आरोप लगाया है कि किसान आंदोलन से उसका कोई लेना-देना नहीं था फिर भी पुलिस ने उसकी पिटाई की है।
अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो मध्यप्रदेश की तरह यूपी में भी आलू की खेती करने वाले व गन्ना किसानों का गुस्सा फूट सकता है। किसान संगठनों ने इसके लिए चेतावनी दी है।
महाराष्ट्र में किसान नेताओं ने सरकार को दो दिन का अल्टीमेटम दिया है। किसान नेताओं ने कहा है कि यदि दो दिन में हमारी मांगे नहीं मानी जाएगी तब पूरे राज्य में आंदोलन तेज होगा।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की परेशानी अब और बढ़ती जा रही है। मंदसौर में भड़की किसान आंदोलन की आग से अब पूरे राज्य को अपने आगोश में ले रही है। कर्फ्यू के बाद भी हालात पर काबू नहीं पाया जा सका है।
एक जून को दो राज्यों में एक साथ किसान आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए। दोनों ही राज्यों में किसान ने शहरों में जाने वाले दूध और सब्जी समेत अन्य उत्पाद भी रोक दिया या फिर फल सड़कों पर फेंक दिए और दूध सड़कों पर बहा दिया। मध्य प्रदेश के मलावा और निमाड़ में आंदोलन उग्र होता चला गया। पुलिस पर पत्थर फेंके और वाहन जला डालना जैसी घटनायें आम होती चली गयी।
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में, भाजपा सरकारों ने विरोध करने वाले किसानों से निपटने के लिए समान रणनीतियां इस्तेमाल की। उनकी सोच थी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संबद्ध संगठनों के साथ एक समझौता करके आंदोलन में फूट दाल दें।