16 दिसंबर की शाम हिंदी भवन, दिल्ली में किताबघर प्रकाशन के संस्थापक पं. जगत राम आर्य के जन्मदिन पर कथाकार विवेक मिश्र को उनके उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ के लिए ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2015’ प्रदान किया गया। यह सम्मान हर साल साहित्य की किसी एक विधा को प्रकाशन के संस्थापक श्री जगत राम आर्य की स्मृति में दिया जाता है। इस बार उपन्यास विधा की पांडुलिपियां आमंत्रित की गई थीं। तीन सदस्य के निर्णायक मंडल, असगर वजाहत, प्रताप सहगल तथा अखिलेश ने विवेक मिश्र के उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ को इस सम्मान के लिए चुना।
दलित मुद्दे पर विवादित बयान देकर घिरे केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह के राज्यसभा में आने का आज विपक्षी सदस्यों ने जमकर विरोध किया। विपक्ष ने उन्हें सरकार से बर्खास्त करने की मांग की। हरियाणा में कुछ समय पहले दो दलित बच्चों की मौत के बाद उनके कुत्ते संबंधी बयान के कारण विपक्षी सदस्य उनसे सदन से जाने की मांग कर रहे थे।
सपनों की उम्र लघुकथा संग्रह। मीडिया का अंतर्पक्ष, संपादित पुस्तक। कहानी संग्रह दीनानाथ की चक्की शीघ्र प्रकाश्य। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से प्रकाशित पत्रिका बहुवचन के संपादक।
हिंदी के अनेक दुर्लभ ग्रंथ, पुरानी पुस्तकों की प्रति, पत्रिकाओं की पुरानी फाइलें अब उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण देश के विश्वविद्यालयों में शोध कार्य प्रामाणिक ढंग से नहीं हो पाते और साहित्य में ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर गड़बड़ियां बनी रहती हैं। इस कमी को देखते हुए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने सन 1933 में प्रकाशित द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ को दोबारा प्रकाशित कर अच्छा काम किया है। लेकिन जिस तरह हड़बड़ी और असावधानी में यह ग्रंथ प्रकाशित किया गया है उसे लेकर चिंता होती है।
अठारहवीं सदी में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की जयंती पर समारोह आयोजित करने को लेकर फैली हिंसा में विश्व हिंदू परिषद के एक नेता की मौत हो गई तथा पुलिसकर्मियों समेत कई अन्य घायल हो गए। पुलिस ने बताया कि यहां पास के एक इलाके में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा की गई गोलीबारी में एक युवक घायल भी हो गया। पूरे कोडागू जिले में निषेधाज्ञा लागू कर है तथा हालात को नियंत्रण में लाने के लिए अतिरिक्त बलों को इलाके में भेजा गया है।
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति को तत्काल कोई खतरा न पहुंचाएं मगर कुछ चीजें तो इसने बिलकुल साफ कर दी हैं। सबसे पहले तो इन नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी के सामने यह सबक रखा है कि समाज को बांटने वाले मुद्दे ज्यादा दूर तक आपका साथ नहीं देते। भाजपा को इस देश में अगर सही मायने में एक दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी बनना है तो उसे सामाजिक विभाजक मुद्दों से परहेज करना चाहिए। एक बार को जनता आपकी दक्षिणपंथी आर्थिक नीतियों को तो सह लेगी मगर सामाजिक विभाजक नीतियों को नहीं। वैसे भारत में आर्थिक दक्षिणपंथी नीतियों के लिए भी जगह कम ही है।
पहली बार मैं किसी मामले में अमित शाह से खुद को पूरी तरह सहमत पाता हूं। यह कि बिहार चुनाव केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं है।