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बिहार में विकास को नहीं मिल रही रफ्तार

बिहार में विकास को नहीं मिल रही रफ्तार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य को विशेष पैकेज क्या दिया यही पैकेज केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल राज्य के मंत्रियों के लिए बड़ा हथियार बन गया है। केंद्रीय मंत्री इसी पैकेज का जिक्रकर उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं और राज्य सरकार को कोस रहे हैं कि विकास के लिए मिल रही धनराशि का राज्य उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
परियोजनाओं में देरी कमजोर कर रही है मेक इन इंडिया की उम्मीदें'

परियोजनाओं में देरी कमजोर कर रही है मेक इन इंडिया की उम्मीदें'

भारत के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम ने देश में आ रहे निवेश के परियोजनाओं में बदलने की धीमी रफ्तार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इससे मेक इन इंडिया की उम्मीदों पर असर पड़ रहा है। साथ ही देश के प्रमुख उद्योग मंडल ने कहा कि कई जारी परियोजनाओं में मौजूदा धीमी रफ्तार की वजह से भी मेक इन इंडिया को लेकर जाहिर की गई उम्मीदें अपनी चमक खोती जा रही हैं।
रफ्तार और रोमांच के नए अवतार में होगा ऑटो एक्सपो मोटर शो

रफ्तार और रोमांच के नए अवतार में होगा ऑटो एक्सपो मोटर शो

ऑटो एक्सपो-मोटर शो 2016 का आयोजन ग्रेटर नोएडा में 5 से 9 फरवरी 2016 तक चलने वाले इंडिया एक्सपो मार्ट में इस बार बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। यहां 37240 वर्गमीटर के अतिरिक्त कार्पेट एरिया के साथ 6 विशाल हॉल बनाये गये हैं जहां एयर कंडिशनिंग और पर्याप्त बिजली आपूर्ति केबलिंग की व्यवस्था है। शो के आगामी संस्करण में कुल इनडोर प्रदर्शनी स्थल को पिछले संस्करण के 69,000 वर्गमीटर से बढ़ाकर इस साल 73,000 वर्गमीटर कर दिया गया है।
नहीं चमक सका रफ्तार सिंह

नहीं चमक सका रफ्तार सिंह

इस फिल्म का नाम सिंह इज ब्लिंग की बजाय सिंहनी इज ब्लिंग होना चाहिए। अगर फिल्म की दो सिंहनियों, सारा (एमी जैक्सन) और ऐमिली (लारा दत्ता) को निकाल दिया जाए तो इस 140 मिनट की फिल्म को 40 मिनट झेलना भी मुश्किल होगा।
3जी के दाम पर 10 गुना तेज रफ्तार लाया एयरटेल

3जी के दाम पर 10 गुना तेज रफ्तार लाया एयरटेल

भारती एयरटेल ने चुनिंदा शहरों में परीक्षण के बाद आज देश भर में 296 शहरों में वाणिज्यिक तौर पर 4जी सेवाएं पेश कर दीं। दूरसंचार कंपनी ने अप्रैल, 2012 में कोलकाता में देश में पहली बार 4जी नेटवर्क पेश किया था।
एक धीमी सी याद

एक धीमी सी याद

उनकी मुंदी आंखों के नीचे अंधेरे की गाढ़ी परत बिछी हुई थी। सरकारी अस्पताल के उस आईसीयू में गुजरे जमाने के मशहूर गवैए उस्ताद इकराम मुहम्मद खान को उनकी जिंदगी आखरी सलामी देने की तैयारी कर रही थी।
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