राज्यों के टैक्स अधिकारियों के विरोध के बाद अब केंद्रीय नौकरशाही ने भी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की प्रस्तावित व्यवस्था पर नाराजगी जताई है। भारतीय राजस्व सेवा यानी आईआरएस के अधिकारियों के संगठन ने जीएसटी के संबंध में कई प्रावधानों पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग की है।
नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति में बदलाव के संकेत देने से पहले विदेश मंत्रालय में बदलाव के संकेत पहले दे दिए। विदेश सचिव सुजाता सिंह को कार्यकाल खत्म होने से सात महीने पहले ही उन्हें अचानक उनके पद से हटाकर यह संकेत प्रधानमंत्री ने पूरी नौकरशाही को दिया। इसके बाद उन्होंने कहा, -नौकरशाही को अब समझना चाहिए कि रवैये में अंतर आया है, पहले संतुलन की बात होती थी, सक्रिय, अब तेजी से आगे बढ़ने वाली विदेश नीति अपनानी है।
सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।