देश के निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने आज एक बार फिर लंबित मामलों की बढती संख्या के बीच न्यायाधीशों की कमी पर चिंता जताई और न्यायपालिका से भविष्य में चुनौतियों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया ताकि यह सुनिश्चित हो कि राष्ट्र एक समग्र समाज बना रहे।
सरकार को सबसे बड़ा वादी बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि न्यायपालिका का बोझ कम करने की जरूरत है क्योंकि उसका अधिकांश समय ऐसे मामलों की सुनवाई करने में लग जाता है जिनमें सरकार एक पक्ष होती है। प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा स्थापित करने की भी वकालत की।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एन. संतोष हेगड़े ने कहा है कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता और बॉलीवुड सुपर स्टार सलमान खान से जुड़े घटनाक्रमों से न्यायपालिका की छवि खराब हुई जिनमें अदालतों ने उन्हें जमानत दे दी और उनके मामलों की बिना बारी के सुनवाई की। भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल ने यहां कहा कि इन दो न्यायिक फैसलों से गलत संदेश गया कि धनी और प्रभावशाली तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं।
भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर ने कहा है कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करती है जब कार्यपालिका अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने में विफल हो जाती है।
कानून मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 458 न्यायाधीशों की कमी है। ये आंकड़े ऐसे समय में आए हैं जब न्यायपालिका और सरकार के बीच हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की भावी नियुक्ति को दिशा देने वाले एक दस्तावेज के विभिन्न उपबंधों को लेकर मतभेद हैं।
उत्तराखंड मामले पर शिवसेना ने गुरूवार को भाजपा को घेरते हुए कहा कि भाजपा को जनादेश संदेहजनक और गैरजरूरी कार्रवाइयां करने के लिए नहीं मिला है। साथ ही शिवसेना ने सवाल उठाया कि क्या भविष्य में देश में आपातकाल जैसी स्थिति उभर सकती है।
कार्यपालिका पर न्यायपालिका की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा ने लोकसभा में आज कड़ा रूख अपनाया और अदालतों द्वारा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद आदि पर की जाने वाली टिप्पणियों पर रोक लगाने या उसकी कोई सीमा तय करने की मांग की।
देश के जाने-माने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि देश की न्यायिक व्यवस्था चरमराई हुई है और इसे सुधारने के लिए देश में कानूनी जागरूकता के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता का एक बड़ा आंदोलन चलाना होगा।
न्यायपालिका पर आप या हम कोई प्रश्नचिह्न लगाएं, तो अवमानना कानून की लक्ष्मण रेखा सामने आ सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान राष्ट्रपति स्वयं न्याय की वर्तमान व्यवस्था एवं उसकी साख पर संकट की बात करें, तो निश्चित रूप से सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवाज उठनी चाहिये।