ईरान और विश्व के कुछ अन्य प्रमुख देश स्विट्जरलैंड में लंबी वार्ता के बाद तेहरान के परमाणु अभियान पर नियंत्रण के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक समझौते की रूपरेखा पर आज सहमत हो गये।
तेहरान के विवादपूर्ण परमाणु कार्यक्रम पर ईरान और छह वैश्विक शक्तियों के बीच बनी सहमति का भारत ने आज स्वागत किया है। इसके साथ ही भारत ने यह उम्मीद जताई है कि यह आपसी सहमति 30 जून तक एक समग्र समझौते का रूप ले सकेगी।
अमेरिकी कंपनी मिराक कैपिटल ने सहारा समूह के खिलाफ 40 करोड़ डालर का मानहानि का मुकदमा करने की बात कही है। मिराक का आरोप है कि सहारा समूह के साथ वित्तीय सौदा नाकाम रहने के कारण उसे अपूरणीय क्षति हुई है और उसके निवेशकों का भरोसा हिला है।
ईरान से परमाणु करार को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अब तक सिर्फ इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के निशाने पर थे मगर अब ओबामा प्रशासन को देश के भीतर से ही चुनौती मिली है। इस मुद्दे पर अमेरिका के रिपाब्लिकन सीनेटर खुलकर ओबामा प्रशासन के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
क्या ईरान के मुद्दे पर अमेरिका और इस्राइल के दशकों पुराने संबंध फीके पड़ जाएंगे? क्या ईरान इन दोनों चिर मैत्री में बंधे देशों के बीच दरार डाल देगा? अगर इ्स्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के वर्तमान अमेरिका दौरे की घटनाओं को देखें तो आभास कुछ-कुछ ऐसा ही होता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य और बांग्लादेश के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए गुरुवार को यहां तीन दिवसीय दौरे पर पहुंची। उनके दौरे से तीस्ता जल बंटवारा करार और भूमि सीमा करार पर आगे बढ़ने की उम्मीदें है। सन 2011 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उनका यह पहला दौरा है।
आपसी संबंधों को नए स्तर तक ले जाते हुए भारत और श्रीलंका ने सोमवार को एक असैन्य परमाणु समझौते पर दस्तखत किए और रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के बीच हुई वार्ता के बाद इसकी घोषणा की गई।
अमेरिकी कंपनियों ने भारतीय परमाणु परियोजनाओं में निवेश के संकेत दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षाा उप सलाहकार ने उम्मीद जताई कि भारत मेंहिस्सा लेने में सक्षम होंगी अमेरिकी कंपनियांऔर उनकी चिंताओं का हल जल्द निल आएगा।
कार्टून पर हमले भलेही यूरोपीय देशों में हो रहे हों, लेकिन अपने देश में वह पहले ही मरणासन्न हालत में है. साढ़े तीन दशक पहले जब हमने पत्रकारिता में कदम रखा था तब लगभग हर अखबार में कार्टून छपा करते थे, उन पर चर्चा हुआ करती थी, नामी कार्टूनिस्ट हुआ करते थे. हिन्दी अखबार, जिनकी अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाती थी, वहाँ भी दो-दो कार्टूनिस्ट होते थे.